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________________ ११६ ] श्रीउतराध्ययन सूत्र न सा ममं वियागाइ, न य सा मज्झ दाहिइ । निगया होहिइ मन्ने, साहू अन्नोत्थ वच्चउ ॥ १२ ॥ पेसिया पलिंउंचन्ति, ते परियन्ति समन्तओ । रायविट्ठि च मन्नन्ता, करेन्ति भिउडिं मुहे ॥ १३ ॥ वाइया संगहिया चेव, भत्तपाणेहि पोसिया । जायपक्खा जहा हंसा, पक्कमंति दिसो दिसिं ॥ १४ ॥ अह सारही विचिन्तेइ, खलुंकेहिं समागओ । किं मज्झ दुट्टसीसेहिं, अप्पा मे श्रवसीय ।। १५ ।। जारिसा मम सीसाओ, तारिसा गलिगद्दहा । गलिगद्द हे जहित्ताणं, दढं पगिरहइ तवं ॥ १६ ॥ मिउमद्दवसंपन्नो, गम्भीरो सुसमाहिओ । विहरइ महिं महवा, सीलभूषण अप्पणा ।। १७ ।। || खलुंकिज्जं समत्तं ||२७|| ॥ श्रह मोक्खमग्गगई गामं अट्ठावीसहमं श्रज्झयणं ॥ मोक्खमग्गगई तच्च, सुरणेह जिगभासियं । चउकारणसंजुत्तं, नागदंसणलक्खणं ॥ १ ॥ नाच दंसणं चेव, चरितं च तवो तहा । एस मग्गुत्तिपन्नत्तो, जिरोहिं वरदं सिहिं ॥ २ ॥ नाणं च दसणं चेव, चरित्तं च तत्र तहा । एयं मगमगुप्ता, जीवा गच्छन्ति सोग्गइं ॥ ३ ॥ तत्थ पंचविहं नाणं, सुयं आभिनिबोहियं । हिना तु तइयं, मणनाणं च केवलं ॥ ४ ॥ एयं पंचविहं नाणं, दव्वाण य गुणा य । पजवाण य सव्वेसिं, नायां नाणीहि देखियं ॥ ५ ॥
SR No.022614
Book TitleDashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshchandra Maharaj
PublisherAtmaram Mohanlal Sheth
Publication Year1949
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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