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________________ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र ] [ ११५. || अह खलुंकिज्जं सत्तावीस इमं श्रयणं ॥ थेरे गहरे गग्गे, मुणी आसि विसारए । राणे गणिभावम्मि, समाहिं पडिसंघ ॥ १ ॥ वहणे वहमाणस, कतारं वत्तए । जोगे वहमाणस्स, संसारो श्रवत्तए ॥ २ ॥ खलुके जो उ जोएइ, विहम्माणो किलिस्सह । श्रसमाहिं य वेएइ, तोत्तओ से य भज्जइ ॥ ४ ॥ एगं डसइ पुच्छम्मि, एगं विन्धइ ऽभिक्खणं । एगो भंजइ समिल, एमो उप्पहपट्टिओ ॥ ४ ॥ एगो पड पासे, निवेस निवज्जइ । उक्कु उफिड, सढे बालगवी बए ॥ ५ ॥ माई मुद्धे पड, कुद्धे गच्छ पडिप्पहं | मंयलक्खेण चिट्ठा, वेगेण य पहावइ ॥ ६॥ छिन्नाले हिन्दर सिलिं, दुद्दन्तो भंजए जुगं । सेविय सुस्सुयाइत्ता, उजहित्ता पलायए ॥ ७ ॥ खलुंका जारिसा जोज', दुस्सीसा वि हु तारिसा । जोइया धम्मजाणम्मि, भजंति धिइदुब्बला ॥ ८ ॥ इडढीगार दिए एगे, एगेऽथ रसगारवे । सायागार विए एगे, एगे सुचिरकोहणे ॥ ६॥ भिक्खालसिए एगे, एगे ओमाणभीरुए थद्धे । एगं आसासम्म, हेऊ हें कारणेहि य ॥ १० ॥ सो वि अन्तरभा सिल्लो, दोलमेव पकुब्वई । आयरियाणं तु वय, पडिकूलेइऽभिक्खणं ॥ ११ ॥ १. पयलंते या । २. भाइ ।
SR No.022614
Book TitleDashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshchandra Maharaj
PublisherAtmaram Mohanlal Sheth
Publication Year1949
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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