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________________ ९८ ] तन्दुलगैचारिक प्रकोर्णकम् बहुमयं अणुमयं भंडकरंडगसमाणं रयणकरंडओविव सुसंगोवियं चेलपेडाविव सुसंपरिवुडं तिल्लपेडाविव सुसंगोवियं (तेल्लेकेला इव सुसंगोविया) मा गं उण्हं मा णं सीयं मा णं वाला मा णं खुहा मा णं पिवासा मा णं चोरा मा णं दंसा मा णं मसगा मा णं वाइयपित्तियसिंभिय सनिवाइया विविहा रोगायंका फुसंतुत्तिकद्दु, एवंपि याई अधुवं अनिययं असासयं चयावचइयं विप्पणासधम्म पच्छा व पुरा व अवस्स विप्पचइयव्वं, एअस्सवियाई आउसो ! अणुपुव्वेणं अट्ठारस्स य पिटकरंडगसंघिओ बारस पांसुलि-करंडा छप्पंसुलिए कदाहं बिहथिया कुच्छी चउरंगुलिया गोवा चउपलिया जिन्भा दुपलियाणि अच्छीणि चउकवालं सिरं बत्तीसं दंता सत्तंगुलिया जीहा अधुट्टपलियं हिययं पणवीसं पलाइं कालिज्जं । दो अंता पंचवामा पण्णत्ता, तंजहा-थूलंते य तणुयंते य, तत्थ णं जे से थूलते तेण उच्चारे परिणमइ, तत्थ णं जे से तणुयंते तेणं पासवणे परिणमइ, दो पासा पगत्ता. तंजहा-वामे पासे दाहिणपासे य, तत्थ णं जे से वामे पासे से सुहपरिणामे, तत्थ णं जे से दाहिणे पासे से दुहपरिणामे २ ।
SR No.022607
Book TitleTandul Vaicharik Prakirnakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayjinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1986
Total Pages166
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_tandulvaicharik
File Size10 MB
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