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________________ (ख) धर्म ग्रन्थादि, शास्त्र और उपदेश-पूर्ण पुस्तकों के पढ़ने से मनुष्य को महात्माओं तथा विद्वानों के विचार जानने को मिलते हैं, जिन्हें मनन कर मनुष्य स्वयं उनके समान बन सकता है। स्वाध्याय से ज्ञान बुद्धि और अनुभव बढ़ता है तथा आलस्यशत्रु का नाश होता है। मनुष्य का जैसा भी पठन-पाठन होगा तथा संगति होगी उसके आचार विचार भी बैसे ही होंगे। अतः मनुष्य को चाहिये कि वह सदा सत्पुरुषों की संगति में रहें। अर्थात् सदा सद्गुरुओं की विनय-भक्ति करना, तथा सत्संग करने का नियम रखना चाहिए। :- स्वाध्याय के ५ अंग हैं। उन्हीं के अनुसार ही संत-समागम की टेव रखनी चाहिये । पाँच अंग निम्न हैं: १ वाचना-गुरु के पास या स्वयं पढ़ना । २. पृच्छना-अपनी शंकाएं गुरु अथवा किसी अनुभवी से पूछना। ३ परावर्तना-पढ़े हुए भाग को पुनः सोचना या दुहराना। ४ अनुप्रेक्षा-पढ़े हुए विषय पर मनन करना। ......५ धर्मकथा-अपना सिखा हुआ ज्ञान दूसरों को सुनाना, सिखलाना, व्याख्यान या चर्चा करना तथा लेखन द्वारा उनका प्रचार करना। 'अतएव प्रतिदिन स्वाध्याय द्वारा थोड़ा २ ज्ञान करने से मनुष्य बहुत बड़ा ज्ञानवान बन सकता है । इसी उद्देश्य से इस ग्रन्थ का नाम 'स्वाध्याय पाठमाला' रखने का विचार था किन्तु इसमें वर्णित सभी बातों से जीवन सुखमय बनता है इसी लिये इसका नाम 'जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला रखना अधिक उपयुक्त समझा गया है।
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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