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________________ १६२] [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला रागाउरे वडिसविभिन्नकाए, मच्छे जहा आमिसभोगगिद्धे ॥६३॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं, तसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दन्तदोसेण सएण जन्तू न किंचि रसं अवरज्झई से ॥६४॥ एगन्तरत्ते रुहरंसि रसे, अतालिसे से कुणई पत्रोसं। दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो ॥६५।। रसाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरे हिंसइऽणेगरूवे । चित्तेहि ते परितावेइ वाले, पीलेइ अत्तट्टगुरू किलिटे ॥६६।। रसाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसन्निोगे। वए विप्रोगे य कहं सुहं से, संभोगकाले य अतित्तलामे ? ॥६७।। रसे अतित्ते य परिग्गहम्मि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुर्द्धि। . अतुट्टिदोसेण दुही परस्स, लोभाविले आययई अदत्तं ॥६८।। तरहाभिभूयस्स अदत्तहारिणा, रसे अदत्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्ढा लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ॥६६॥ .
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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