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________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र ] ॥ अह नवमं नमिपन्यज्जा अज्झयणं ।। चइऊण देवलोगाओ, उववन्नो माणुसंमि लोगंमि । उवसन्तमोह णिज्जो, सरइ पोराणियं जाई ।।१।। जाई सरितु भयवं, सहसंबुद्धो अणुत्तरे धम्मे । पुत्तं ठवित्तु रज्जे, अभिणिक्खमइ नमी राया ॥२॥ से देवलोगसरिसे, अन्तेउरवरगो वरे भोए । भुंजितु नमी राया, बुद्धो भोगे परिच्चयइ ।।३।। मिहिलं सपुरजणवयं, बलमोरोहं च परियणं सव्वं । चिच्चा अभिनिक्खन्तो एगन्तमहिड्ढीओ भयवं ॥४॥ कोलाहलगसंभूयं, प्रासी मिहिलाए पव्वयन्तमि । तइया रायरिसिमि, नमिमि अभिणिक्खमंतंमि ॥५॥ अब्भुट्टियं रायरिसिं, पव्वजाठम्णमुत्तमं । सको माहणरूवेण, इमं वयणमब्यवी ॥६॥ किराणु भो अज्ज मिहिलाए, कोलाहलगसंकुला। 'सुवन्ति दारुणा सद्दा, पासाएसु गिहेसु य ॥७॥ एयमटुं निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ। तो नमी रायरिसी, देविंदं इणमब्बधी ॥८॥ मिहिलाए चेइए वच्छे, सीयच्छाए मणोरमे। पत्तपुप्फफलोवेए, बहूणं बहुगुणे सया ॥९|| वारण हीरमाणम्मि, चेइयम्मि मणोरमे । दुहिया असरणा अत्ता, एए कंदंति भो! खगा ॥१०॥ एयमट्ट निसामित्ता, हेऊकारणचोइयो। तओ नमि रायरिसिं, देविंदो इणमब्बवी ॥११॥ १. सुच्च०।
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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