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________________ [११] ___ इन अभिमतोंसे भी हमारा उपरोक्त कथन बिलकुल स्पष्ट है कि भगवान पार्श्वनाथ एक ऐतिहासिक व्यक्ति थे; परन्तु इसके साथ ही यह प्रश्न अगाड़ी आगया है कि क्या पार्श्वनाथ नी ही जैनधर्मके संस्थापक थे, जैसे ऊपरके कितनेक विद्वानोंका मत है । हमारे प्रसिद्ध देशभक्त ला० लाजपतरायनीने तो अपने "भारतवर्षका इतिहास" (भा० १४० १२९)में यह मत जैनियोंका बतला दिया है । किन्तु दर असल बात यह नहीं है । जैन लोग तो अपने धर्मको अनादि निधन मानते हैं । वह यथार्थ सत्य है। इस कारण उसका कभी लोप नहीं होता । पर तो भी वह कालचक्रके अनुसार विक्षिप्त और उदित होता रहता है। इस कालमें जैनधर्मका सर्व प्रथम प्रचार भगवान ऋषभदेव या वृषभदेवने किया था और उनके बाद श्रीपार्श्वनाथजी जैनधर्मके कालान्तरसे २३ तीर्थकर और हुये थे। संस्थापक नहीं हैं। इन सबका समय आजकलके माने हुये प्राचीन और इतिहासातीत कालमें जाकर बैठता है । हम अगाड़ी इस बातको स्वतंत्र प्रमाणों द्वारा प्रगट करेंगे कि जैनधर्मका अस्तित्व वैदिक काल एवं उससे भी पहले विद्यमान था । इस दशामें हम भगवान् पार्श्वनाथको जैनधर्मका संस्थापक स्वीकार नहीं कर सक्ते । प्रत्युत कई विद्वान तो पार्श्वनाथजीके पूर्वागामी तीर्थंकरोंको भी ऐतिहासिक पुरुष स्वीकार करते हैं। श्री नगेन्द्रनाथ वसु, प्राच्य विद्यामहार्णव एम० आर० ए. ___ एस० आदि स्पष्ट लिखते हैं कि-"उन बाइसवें तीर्थंकर श्रीने- (पार्श्वनाथजी)से पहले बाईसवें तीर्थंकर
SR No.022599
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1931
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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