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________________ [७] भगवान् पार्श्वनाथकी ऐतिहासिकता स्वीकार करते हुये लिखते हैं कि " श्री पार्श्वनाथजी जैनोंके तेईसवें तीर्थंकर हैं । इनका समय इसासे ८०० वर्ष पूर्वका है।" इसी तरह हिन्दी विश्वकोष' के योग्य सम्पादक श्रीमान् नगेन्द्रनाथ वसु, प्राच्यविद्यामहार्णव, सिद्धान्तवारिधि, शब्दरत्नाकर "हरिवंशपुराण" के परिचयमें लिखते हैं कि "जैनधर्म कितना प्राचीन है, इस विषयमें आलोचना करनेका यह स्थान नहीं है; तब इतना कह देना ही बस होगा कि जैन संप्रदायके २३ वें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथस्वामी स्वीप्टाब्दसे ७७७ वर्ष पहले मोक्ष पधारे थे।" एक अन्य लब्धकीर्ति बंगाली विद्वान् डॉ. विमलचरण लॉ० एम० ए०, पी० एच० डी०, एफ० आर० हिस्ट० एस० आदि अपनी पुस्तक 'क्षत्रिय छैन्स इन बुद्धिस्ट इन्डिया' (ए० ८२ में) वैशालीमें जैनधर्मका प्रचार भगवान् महावीरसे पहलेका बतलाते हुये लिखते हैं कि " पार्श्वनाथनी द्वारा स्थापित हुये धर्मका प्रचार भारतके उत्तर-पूर्वी क्षत्रियोंमें और खासकर वैशालीके निवासियोंमें था।" दक्षिण भारतीय विद्वान् प्रॉ० एम० एस० रामास्वामी एंगर एम० ए० लिखते हैं कि "भगवान् महावीरके निकटवर्ती पूर्वन पार्श्वनाथ थे, जिनका जन्म ईसासे पहले ८७७ में हुआ था। उनका मोक्षकाल ईसासे पूर्व ७७७ में माना जाता है । किन्तु इनके उपरान्त एक विश्वसनीय जैन इतिहासको पाना कठिन है। " इसी अपेक्षा १-जैनधर्म विषयमें अजैन विद्वानोंकी सम्मतियां पृ० ५१ । २-हरिवंशपुराण भूमिका पृ० ६ । ३-स्टडीज इन साउथ इन्डियन जैनीज्म भा० १ पृ. १२।
SR No.022599
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1931
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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