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________________ हित्यमें केवल यही एक उल्लेख नहीं है, बल्कि और भी कई उल्लेख हैं जिनसे भगवान् पार्श्वनाथके अस्तित्व और उनके शिष्यों आदिका परिचय मिलता है। अतएव इसतरह भी हम जैनमान्यताको ठीक पाते हैं। ऐसे ही उत्कट प्रमाणोंको देखकर आधुनिक विद्वानोंने भी भगवान् पार्श्वनाथजीको एक ऐतिहासिक आधुनिक विद्वान भीश्री महापुरुष माना है । वह कोई काल्पनिक पार्थको ऐतिहासिक व्यक्ति नहीं थे, यह बात प्रायः सब ही पुरुष मानते हैं। विद्वान मानने लगे हैं । यहांपर उनमेंसे कुछका अभिमत उद्धृत कर देना अनुचित न होगा। पहले ही प्रसिद्ध भारतीय विद्वान् डा० टी० के० लड्डू बी० ए०, पी० एच० डी०, एम. आर० ए० एस० आदिको ले लीजिए। आप अपने बनारसवाले व्याख्यानमें कहते हैं:-" यह प्रायः निश्चित है कि जैनधर्म बौद्धमतसे प्राचीन है और इसके संस्थापक चाहे पार्श्वनाथ हों और चाहे अन्य कोई तीर्थकर जो महावीरजीसे पहले हुए हों।" प्रख्यात् दार्शनिक विद्वान् साहित्याचार्य ला० कन्नोमल एम० ए० जज एक लेखमें १-भगवान् महावीर और म० बुद्धका परिशिष्ट । वौद्ध शास्त्रोंमें जैनोंका उल्लेख निगन्थरूपमें हुआ है । स्वयं जैनग्रंथोंमें भी जैनमुनि 'निगथ' के नामसे परिचित हुये हैं । (मूलाचार पृ० १३) 'निगंथ' का संस्कृतरूप 'निर्ग्रन्थ' है, जिसका भाव निर (=नहीं+ग्रंथ (=ग्रंथि = गांठ) अर्थात् ग्रंथियोंसे रहित है । जैकोवी और बुल्हरने निगंथोंका भाव जैमोंसे प्रमाणित किया है । (देखों जैनसूत्र S. B. E. की भूमिका । २-जैन लॉ० पृ० २२३ ।
SR No.022599
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1931
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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