SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्कालान तत्कालीन धार्मिक परिस्थिति। [७१ . आदिकी पूजाका प्रचलित होना प्रगट होता है । आनसे करीब दो हजार वर्ष पहलेके लिखे हुये बौद्ध शास्त्रोंसे भी उस समय गंगास्नान ब्राह्मणों के निकट धर्मकार्य था यह प्रकट है।' इसी तरह पंचाग्नि आदि कुतपमें लीन तापस लोग उस समय मौजूद थे, यह भी आज सर्व प्रकट है । ब्राह्मणोंके 'बृहद आरण्यक उपनिषद" ( ४।३।२२ ) में 'श्रमण और तापसों' का उल्लेख है । श्रमण वे लोग थे जो वेदविरोधी थे और वह मालूम ही है कि यह शन्द मुख्यतः जैन और बौद्ध साधुओंके लिए व्यवहृत होता था । इसलिये उस समय जैन श्रमण होना ही संभाव्य है । और इस अवस्थामें उक्त प्रकार श्रमणभक्त श्रावकका ब्राह्मणपुत्रको मिथ्यात्व छुटानेकी उपरोक्त कथा ऐतिहासिक सत्यको लिए हुए प्रतीत होती है । तापस लोग वेदानुयायी थे और वे मुख्यतः विविध वैदिक मत-मतान्तरोंमें विभक्त थे । हमें उनके विषयमें बतलाया गया है कि "वे नगरोंके निकट अवस्थित जंगलों में विविध दार्शनिक मतोंके अनुयायी होकर साधुनीवन व्यतीत करते रहते थे। वे अपना समय अपने मतकी क्रियायोंके अनुकूल विताते थे अर्थात् या तो वे ध्यानमग्न रहते थे, अथवा यज्ञादि करते थे, या हठयोगमें लीन रहते थे अथवा अपने मतके सूत्रोंके पठनपाठनमें व्यस्त होते थे। उनका अधिक समय भोजनके लिए फलों और कन्दमूलोंके इकट्ठे करने में बीतता था ।"* इस प्रकार उस समयके तापतोंका स्वरूप था। तथापि उस समय यक्षादिकी पूजा भी प्रचलित थी, यह बात भी . १-बुद्धजीवन ('S. B.E. XIX) पृ० १३१-१४२ १४३ । २-बुधिस्ट इन्डिया पृ० १४०-१४१ ।
SR No.022598
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1928
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy