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________________ भगवान पार्श्वनाथ । .. पाठकगण, जिस व्यक्ति के विषयमें हम प्रारम्भमें कितने ही प्रश्न कर आए हैं, उसका सम्बन्ध गणधर भगवान द्वारा बतलाई गई उक्त घटनासे है । भगवान महावीरस्वामीके समयके अभयकुमारका जीव ही अपने पहले के तीसरे भवमें ब्राह्मणपुत्र था। उसीका उल्लेख हम ऊपर कर आए हैं। अभयकुमारका यह तीसरा भव भगवान पार्श्वनाथके जन्मकालसे पहले हुआ समझना चाहिये; क्योंकि ब्राह्मणभवसे वह स्वर्ग गया था और स्वर्गसे आकर अभयकुमार हुआ था । इस प्रकार अभयकुमारके उपरोक्त पूर्वभव वर्णनमें हमें भगअनुवादसे । मूल श्लोक परिच्छेदके प्रारंभमें दिये हुओंको छोड़कर इस प्रकार हैं:___"तदनुग्रहबुध्यैवमाहासौ भव्यवत्सल: : इतो भवातृतीयेत्र भवे भव्योपि स कुधीः ॥४६॥ केनचित्पथिकोनामा जैनेन पथस व्रजन् । पाणाणराशिसंलक्ष्यभूताधिष्ठित भूरूहः ॥ ४६८ ॥ समीपं प्राप्य भक्त्यातो देवमेतदिति द्रतं । परीत्य प्राणमद् दृष्ट्वा तच्चेष्टयां श्रावक: स्मिती ॥४६९॥ तस्यावमितिविध्यर्थ तद्रुमादात्तपल्लवैः । परिमृज्य स्वपादाक्तधूलिं ते पश्य देवता॥४७०॥ नाहतानां विघाताय समर्थत्य वदद् द्विजं । विप्रेणानु तथैवास्तु को दोषस्तव देवतां ॥८७१॥ परिभृतपदं नेष्याम्युपाध्यायस्त्वमत्रमे । इत्युक्तस्तेन तस्मात्स प्रदेशांतरमाप्तवान् ॥४७२॥ श्रावकः कपिरोमाख्यवल्लीजालं समीक्ष्य मे। देवमेतदिति व्यक्तमुवत्वा भक्या परीत्य तत् ॥४७३॥ प्रणम्य स्थितवान् विप्रो. पाविष्कृतरुपोत्युक: । कराभ्यां तत्समुच्छिदन् विवृदंश्चसंमततः ॥ ४७४ ॥ तत्कृतासह्यकंकाविशेषेणातिवाधितः । एतत्सन्निहितं देवं त्वदीयमिति भीत न ॥४७॥ सहासो विद्यते नान्यद्विधात सुखदुःखयोः । प्राणिनां प्राक्तनं कर्म मुक्वास्मिन्मूलकारणं ॥ ४७६ ॥ श्रेयो वाप्तुं ततो यत्न तपोदानादि कर्मभिः । कुरुत्वमिति तन्मौट्य हित्वा दैवं निबंधनं ॥४७७॥ देवाः खलु सहायत्व यांति पुण्यवतां नृणां । तके किंचित्कराः पुण्यवलये भृत्यस न्मिभाः ॥४७८॥ इत्युक्त्वास्तद्विजोद्भूतदेवमौत्यस्ततः क्रमात् ।......
SR No.022598
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1928
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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