SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्कालीन धार्मिक परिस्थिति। [६३ तत्कालीन धार्मिक परिस्थिति ! " कश्चिद्विप्रसुतो वेदाभ्यासहेतोः परिभ्रमन । देशांतराणि पाखंडिदेवतातीर्थजातिभिः ॥ ४६६ ॥ लोकेन च विमुह्याकुलीभूतस्तत्प्रशंसन ।। तदाचारितमत्त्युच्चैरनुतिष्ठन्नयेच्छया ॥ ४६७ ॥" -उत्तरपुराण । एक मनुष्य आकुल व्याकुल हुआ दृष्टि पड़ रहा है । कपिरोमा बेलके पत्ते अब भी उसके हाथमें हैं। वह रह रहकर अपने सारे शरीरको खुजालता है । खुजलीके मारे वह घबड़ाया हुआ है । देखने में सुडौल-सौभ्य-युवा है । उसका उन्नत भाल चन्दन चर्चित है । सचमुच ही वह एक ब्राह्मण पुत्र है, परन्तु इसतरह यह बावला क्यों बन रहा है ? कपिरोमा बेलके पत्ते इसके हाथमें क्यों हैं ? रहरहकर अपनी देहको वह क्यों खुजला रहा है और खिनाई हुई दृष्टिसे वह अपने साथीकी ओर क्यों घूर रहा है ? इन सब प्रश्नोंका ठीक उत्तर पानेके लिये, पाठकगण जरा भगवान महावीरजीके समवशरणके दृश्यका अनुभव कीजिए। अनुपम गंधकुटीमें सर्वज्ञ भगवान अंतरीक्ष विराजमान थे । भूत, भविष्यत्, वर्तमानका चराचर ज्ञान उनको हस्तामलकवत् दर्शता था । सामने रक्खे हुये दर्पणमें ज्यों प्रतिबिम्ब साफ दिखाई पड़ता है उसी तरह परमहितू-रागद्वेष रहित-वीतराग भगवानके ज्ञानरूपी दर्पणमें तीनों लोकका त्रिकालवर्ती बिम्ब स्पष्ट नजर पड़ रहा था ! कोई बात ऐसी न थी जो वहां शेष रही हो । उन
SR No.022598
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1928
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy