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________________ ६०] भगवान पार्श्वनाथ । शब्दोंका प्रयोग सदा सर्वदा होता रहा है । जैनशास्त्रों में भी इसके अनेकों उदाहरण मिल सक्ते हैं । यही दशा साधारण नामकी है । सारांशतः जैन शास्त्रोंसे भी हमें उस समयकी दशाके खासे दर्शन होजाते हैं। अब देखना यह रहा कि उस समयकी राजनैतिक दशा क्या थी ? इसके साथ ही 'धार्मिक परिस्थिति' का परिचय पाना भी जरूरी है, परन्तु हम उसका दिग्दर्शन एक स्वतंत्र परिच्छेदमें अगाड़ी करेंगे । अस्तु, यहांपर केवल राजनैतिक अवस्थापर एक ननर और डालना बाकी है । जैन पुराणोंपर जब हम दृष्टि डालते हैं तो उस समय सर्वथा स्वाधीन सम्राटोंका अस्तित्व पाते हैं । सार्वभौमिक सम्राट् ब्रह्मदत्त भगवान पार्श्वनाथके जन्मसे कुछ पहले यहां मौजूद थे ।' किंतु ऐसा मालूम होता है कि उनकी मृत्युके साथ ही देशमें उच्छृङ्खलताका दौरदौरा होगया था। छोटे छोटे राज्य स्वाधीन बन बैठे थे और विदेशी लोग भी आनकर जहां तहां अपना अधिकार जमा लेने लगे थे। इस तरहकी राज्य व्यवस्थामें ऐसे भी उल्लेख मिलते हैं जिनसे यह घोषित होता है कि जनता खास अवसरोंपर स्वयं एक योग्य व्यक्तिको अपना राना युन लेती थी। यह उपरान्तके प्रजसत्तात्मक राज्य जैसे लिच्छवि, मल्ल आदिका पूर्वरूप कहा जाय तो कुछ अनुचित नहीं है । जैन १. उत्तरपुराण पृ० ५६४ और कैम्ब्रिज हिस्ट्री ऑफ इन्डिया भाग १ पृ० १८० । २. उपरान्तके नागकुमारचरित और करकण्डु चरित्र आदि ग्रंथोंके पढ़नेसे यही दशा प्रकट होती है । अनेक छोटेर राज्य दिखाई पड़ते हैं और विद्याधरोंको आनकर यहांपर राज्य करते ब्रतलाया गया है। ३. दत्तपुरकी प्रजाने करकण्डुको अपना राजा चुना था । करकण्डुचरित देखो।
SR No.022598
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1928
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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