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________________ भगवान पार्श्वनाथ । प्राकृतमें अपना उपदेश दिया था। भगवान पार्श्वनाथ और महावीर स्वामीके गणधरोंने अईमागधी प्राकृतमें उनकी द्वादशांग वाणीकी रचना की थी तथापि मक्खालिगोशालके ग्रन्थोंकी भाषा एक अन्य ही प्राकृत थी। सचमुच उस समयको सर्वसाधारण लोगोंकी दैनिक बोलाचालकी भाषा जिसको कि हरकोई सुगमताके साथ समझता था और जो पश्चिममें कुरुदेशसे लेकर पूर्व में मगध तक, उत्तरमें नेपालको तराईमें श्रावस्ती और कुशीनारा तक और दक्षिणमें एक ओरको उज्जैन तक बोली जाती थी, अवश्य ही संस्कृत नहीं थी। साहित्यक (classical) संस्कृतका जन्म भी शायद उस समय नहीं हुआ था। सुतरां एक तरहसे तक्षशिलासे लेकर चम्पा तक कोई भी संस्कृत नहीं बोलता था । केवल प्राकृत भाषाओंको ही प्रधानताथी; जोकि आनतक जैनधर्म और बौद्ध धर्मकी मुख्य भाषायें है। उस समय जब कि भगवान पार्श्वनाथ का जन्म होनेवाला था तब मनुष्योंमें केवल ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ही भेद थे। इनके अनेकानेक प्रभेद दिखाई नहीं पड़ते थे; जैसे कि आज एक एक वर्ण अथवा जाति अनेक उपजातियोंमें बटी हुई दिखाई पड़ती है। उस समयके लोग इन चार वर्णों को संभाले हुए थे, परन्तु विप्रोंके जातिमदसे इनमें जो परिवर्तन उपरान्तको होने लगे थे, उनका दिग्दर्शन हम कर ही चुके हैं। वास्तवमें अपनी आजीविकाको बदल कर हरकोई अपना वर्ण परिवर्तन भी करसक्ता था। उस समयके लोग अपने दैनिक जीवनमें नामः संज्ञा भी विविध १-आजीविन्ग्स भाग १ पृ. ४५ । २-बुद्धिस्ट इन्डिया पृ० १४७ । ३-पूर्व पुस्तक पृ० २११ !
SR No.022598
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1928
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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