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________________ उस समयकी सुदशा। [५५ गवेषणामय विवाद करना आवश्यक समझते थे । यही कारण है कि भगवान पार्श्वनाथके उपरांत इस अशांतिने एक क्रांतिका रूप धारण कर लिया था और उस समय हर प्रकारकी स्थितिके हजारों मनुष्य-पुरुष और स्त्री समान रूपमें गृह त्यागकर सैद्धांतिक विवाद क्षेत्रमें कूद पड़ते थे । संसारभरमें यह समय अनोखा और अपूर्व था। भगवान पार्श्वनाथके उपदेशने उनको इतना साहस दे दिया था कि वे अपने २ मन्तव्यों की स्पष्ट रीतिसे घोषणा करने लगे थे। इसीलिए हमें बतलाया गया है कि उस समय ये साधु लोग वर्षाऋतुको छोड़कर बाकी वर्षभर देशमें भ्रमण करके सैद्धांतिक शास्त्रार्थ और वादमें समय व्यतीत करते थे। म० बुद्धने साधुओंके इस वादकी बढ़ी हुई मात्राको, जिप्सने कि एक 'अति' का रूप धारण कर लिया था, खुला विरोध किया था और सैद्धांतिक शास्त्रार्थको मनुष्य जन्मके उद्देश्यकी प्राप्तिमें बाधक माना था । सैद्धान्तिक विवेचनाके इस बढ़ते हुए जमाने में संस्कृतकी उन्नति प्रायः नही हुई थी; क्योंकि इस समय तो धार्मिकक्षेत्रमें अपनी निज्ञासाओं अथवा सिद्धान्तोंको लेकर एक मामूली ग्रामीण तक भी अगाड़ी आता था और वह स्वभावतः अपने मन्तव्योंको उसी भाषामें प्रगट करता था जो वह अपने घरमें रोनमर्रा बोलता था। यही कारण है कि उस समयके प्रख्यात् मतप्रवर्तकोंको अपने सिद्धान्तशास्त्रोंको उन प्राकृत भाषाओं में रचना पड़ा था, जो उनके धर्मके मुख्य स्थानोंमें प्रचलित थीं। इसी अनुरूप म० बुद्धने पाली १-बुद्धिस्ट इन्डिया पृ० २४७ । २-हिस्टॉरीकल ग्लीनिजास पृ० ९ । ३-सुत्तनिपात (SBE) ८३० ।
SR No.022598
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1928
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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