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________________ ४६ ] भगवान पार्श्वनाथ | मानी हुई बात है कि जिस देशका व्यापार अभिवृद्धिपर होगा वह देश अवश्य ही सम्पत्तिशाली होता है । इसी अनुरूप भारतकी आर्थिक अवस्था भी उस समय बहुत ऊंचे दर्जेकी थी । आजकलकी तरह वह दरिद्र नहीं था । भगवान पार्श्वनाथ से कुछ पहले जो जैनशास्त्रों में बताए गए अंतिम चक्रवर्ती सम्राट् ब्रह्मदत्त होगए थे, उनकी विभूतिका जो वर्णन जैन शास्त्रों में दिया गया है, उससे भी यहांकी समृद्धशाली दशाका परिचय मिलता है । चक्रवर्ती सम्राट की सम्पत्ति जैनशास्त्रों में इस तरह बतलाई गई है उनकी सेना में चौरासी लाख मदोद्धत हाथी, अठारह करोड़ तीक्ष्णवेगके धारक घोड़े, चौरासी लाख सुंदर रथ, और चौरासी करोड़ पयादे लिखे गए हैं । उनके आधीन तीस हजार देश और छयानवें करोड़ गांव आदि बताए गए हैं। बत्तीस हजार राजा चक्रवर्तीकी सेवा करते हैं । इसी तरह और भी अनेक प्रकारकी उनकी संपदा बताई गई है । यह सब ही सम्राट ब्रह्मदत्तके यहां मौजूद थी। इससे उस समय के विशेष संपत्तिशाली भारतवर्षके स्पष्ट दर्शन होते हैं । इस तरह की सुखसम्पन्न दशामें यहांके निवासियोंके दैनिक जीवन भी बड़े सुखसे व्यतीत होते थे । आनन्द के साथ वह पेट भरकर बेफिकरीसे अपने परलोक साधनकी धुन में रहते थे, परन्तु विम लोगों के प्राबल्यसे वे बहुधा उनको पूजकर अथवा और तरहसे क्रियाकाण्डकी पूर्ति करके अपने कर्तव्यकी इतिश्री समझ लेते थे । शेष जीवनभर वह मजेदार सांसारिक रंगरलियां किया करते थे । यहां तक कि ब्राह्मण ऋषि एवं अन्य परिव्राजक साधु आदि स्त्री
SR No.022598
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1928
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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