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________________ ३४] भगवान पार्श्वनाथ । नहीं कह सक्ता, किन्तु वह अपने महापुरुषोंके प्रतिबिम्ब देशविदेशोंमें आदरणीय स्थानोंपर बनाते हैं और उनकी विनय करते हैं । लन्दनके ट्राफलगर स्क्वायरमें एडमिरल नेलसन साहबकी पाषाण-मूर्ति खड़ी हुई है । अंग्रेन लोग प्रतिवर्ष एक नियत दिवस वहां उत्सव मनाते हैं और मूर्तिपर फूल-हार आदि चढ़ाते हैं। इतने पर भी उनका यह कृत्य ' मूर्तिपूजा' के रूपमें नहीं गिना जासक्ता; क्योंकि उनको उस पत्थरकी मूर्तिसे कुछ सरोकार नहीं है सरोकार है तो सिर्फ इतना कि वह उसके निमित्तसे अपनी कृतज्ञता और भक्तिको प्रदर्शित करते हुये अपने में एडमिरल नेसलनके वीर भावोंको भर लेते हैं । अंग्रेजोंको जो आज समुद्रोंपर सबसे बड़ा चढ़ा अधिकार प्राप्त है, वह एडमिरल नेलसनके हो कारण है। नेलप्सनने तो एक ही जल-संग्राममें अंग्रेजों को विजयलक्ष्मी दिलाई थी; किन्तु उनकी मूर्तिने अंग्रेनों में लाखों नेलपन पैदा कर दिये हैं। अतः जो मूर्तिका आदर करते हैं; वह आदर्शभावसे करते हैं। इसी तरह नैनियोंकी पूना है। वह मूर्तिपूना न होकर आदर्शपूना है । जैन ग्रंथों में पाषाण आदिमें देवकी कल्पना करके पूजा करनेका खुला निषेध है । मूर्तिका सहारा लेकर उपासक धीरवीर और जगतोद्धारक तीर्थंकरोंके अपूर्व गुणोंसे अपने आन्तर्भावों को अलंकृत करता है । जैनपूजामें दीनता और याचनाको स्थान प्राप्त नहीं हैं । वहांतो कृतज्ञताज्ञापन और आत्मानुभवको मुख्यता प्राप्त है। अतः जिनपूजामें आनन्दकुमारकी तरह शङ्का करना वृथा है । अस्तु;
SR No.022598
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1928
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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