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________________ नागवशंजोंक परिचय | ..[ १८१ हैं। यह प्रदेश हिन्दू शास्त्रोंका सु-तल होसक्ता है, यह सु· जातियों (Kidarites or Sutribes) का निवासस्थान होनेके रूपमें इस सेवा था । इसमें आजकलका बलख भी था । यहां सुवेळ विद्याधरको जीतनेका उल्लेख पद्मपुराण करता ही है । अतएव सुवे -- "लका सु-तल होना ही ठीक जंचता है। उपरांत रामचन्द्रजीने अक्षयनमें डेरा डाले थे और वहां रात पूरी करके हंस द्वीपमें हंसपुरके राजा हंसरथको जीता था । यहीं अगाड़ी रणक्षेत्र मादकर वह डट गये थे । अक्षयवन संभवतः जक्षत्रस (Jaxatres ) नदीके आस"पासका वन हो और इसके पास ही सुपर्ण आदि पक्षियों का निवास स्थान था, यह विदित ही है; यद्यपि पक्षीका भाव यहां जातियोंसे ही है। अस्तु, हंस भी एक पक्षीका नाम है, इसलिये हंसद्वीप और हंसरथसे भाव पक्षियोंकी जातिसे होसक्ता है । इसके 'अगाड़ी जो लंकाकी सीमा आगई ख्याल की गई है वह भी ठीक 'है, क्योंकि राक्षसवंशजोंका एक देश हरि भी जैन पद्मपुराण में बताया गया है । आर्यबीज अथवा आर्यना ( Aeriana) प्रदेश बाइबिल में 'हर' नामसे परिचित हुआ है। तथापि यहाँपर हूण अथवा तातार जातियां भी रहतीं थीं, जिनमें ही राक्षसवंशी भी आजकल माने गये हैं ।" इस हालत में हंसदीपके अगाड़ी राक्षसोंका हर प्रदेश आजाता था। इसलिये रामचन्द्रजीका विरोध वहींसे होने लगा होगा, जिसके कारण वह वहीं पर रणक्षेत्र रचकर डट गये थे । अतएव इस तरह भी लंकाका मिश्र में होना ही ठीक जंचता है । १ पूर्व० भाग १ पृ० ४५६. २ पूर्व० भाग २ पृ० २४३, . ३ पद्मपुराण पृ० ६८ और ७७ ४ दी इंडि० हिस्टा० क्वारटली भाग १ - पृ० १३१ ५ पूर्व० भाग १ पृ०, ४६२.
SR No.022598
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1928
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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