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________________ १८०] भगवान पार्श्वनाथ । धारण करनेवाला पुर । तिसपर वहांके राजाका नाम जो समुद्र बताया है, वह भी इसी बातका द्योतक है । नदीके किनारेपर बप्सनेवालोंका राना समुद्ररूपमें उल्लेखित किया गया प्रतीत होता है। इस अपेक्षा बेलंघरपुर मध्यऐशियामें बृहद् पामीर (Great Pamir) पर्वतके निकट अवस्थित प्रतीत होता है। इस हालतमें रामचन्द्रनी बेहद उत्तरमें चले गये मालूम होते हैं किन्तु उनका. इस तरह घूमकर जाना राजनीतिकी दृष्टि से ठीक ही था; क्योंकि दक्षिणभारतके अगाड़ी रत्नद्वीपसे तो रावणके वंशन ही रहते थे। इसलिये घूमकर ठीक लंकापर जा निकलनेसे उनको बीचमें युद्ध में अटका रहना नहीं पड़ा था। उधरसे जानेमें एक और बात यह थी कि इन प्रदेशोंकी योद्धा जातियोंको भी वे अपना सहायक बना सके थे । तिसपर गरुडेन्द्र उनका सहायक मित्र बतलाया गया है और उपरान्त उसने उनकी सहायताको रणक्षेत्रमें सिंहवाहन और गरुडवाहन देव भेजे थे । इन गरुड़के पंखोंकी पवन क्षीरसागरके जलको क्षोभरूप करनेवाली और रावणके सहायक सोको भगानेवाले बताई गई है। इस अवस्थामें यह गरुडवाहन कैसपियन समुद्रके निकट बसनेवाले शाक्य ( Soythian ) जातिके योद्धा होना चाहिये, क्योंकि इसी समुद्रको क्षीरसागर भी पहले कहते थे। यद्यपि जैन शास्त्रमें गरुडेन्द्र देवयोनिका माना गया है अतएव रामचंद्रनीका इधर होकर जाना बहुत ही सुझका काम था। बेलंधरपुरसे आगे वह सुबेल पर्वतपरके सुवेलनगरमें आये कहे गये .. . . १ पूर्व. भा०१ पृ. १३६. २ पद्मपुराण पृ० ६५१. ३ दी इंडि. हिस्टा० क्वारटर्ली भाग २ पृ. ३५,
SR No.022598
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1928
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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