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________________ १६२] भगवान पार्श्वनाथ । राजाओंमें एक रक्ष, जिसका पुत्र राक्षस हुआ। इन्हींके नामसे इस वंशके राजा 'राक्षस' कहलाने लगे । राक्षसके दो पुत्र आदित्य गति और कीर्तिधबल हुये । विजया दक्षिण श्रेणीके मेघपुरके राजा अतीन्द्रके पुत्र श्रीकंठने अपनी मनोहरदेवी कन्या कीर्तिधवलको दे दी; पर रत्नपुरके पुष्पोतर राना उसे अपने पुत्र पद्मोत्तरके लिये चाहते थे । श्रीकंठने सुमेरु यात्रा करते हुए पद्मोत्तरकी बहिन पद्मा भाको देखा सो वह उसे उठा लाया । इसपर लड़ाई हुई, पर पद्माभाके कहनेसे संधि होगई । कीर्तिधवलके आधीन निम्नदेश थेः सन्ध्याकार, सुबेल, कांचन, हरिपुर, जोधन, जलधिध्यान, हंसद्वीप, भरक्षम, अर्धखर्ग, कूटावर्त, विघट, रोधन, अमलकांत, स्फुटतट, रत्नद्वीप, तोपावली, सर, अलंबन, नभोमा, क्षेम इत्यादि। श्रीकंठ उपरोक्त संधिमें अपना राज्य खो बैठा था, सो कीर्तिधवलने इसे लंकासे उत्तर भाग तीनसौ योनन समुद्रके मध्य बान. रद्वीप, जिसके मध्य किहुकुंदा पर्वत था, वह दिया । इस द्वीपमें बानर मनुष्य समान क्रीड़ा करते थे। श्रीकंठने उन्हें पाला और किहुकंद पर्वतपर किहुकंद नगर बसाया। इसके उत्तराधिकारियोंमें एक अमरप्रभ राजा हुआ, जिसने लंकाके राजाकी पुत्री गुणवतीसे विवाह किया था। इसीने अपनी ध्वजामें ‘वानर' चिन्ह रखना प्रारम्भ किया, जिससे इसके वंशन बानरवंशी कहलाने लगे थे। इसने विनयार्धके सारे राजाओंको जीता था। उपरांत अनेक राजा ओंके बाद इस वंशमें एक राना महोदधि नामक श्रीमुनि सुव्रतनाथनी (२०वें तीर्थकर)के समयमें हुआ था। इनके समयमें लंकाका राना इनका मित्र विद्युतकेश था । फिर एक किहध नामक राजा
SR No.022598
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1928
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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