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________________ नागवंशजोंका परिचय ! [१६१ तले ३० योजन प्रमाण लंका नामक नगरी थी, जिसके अनेक उद्यान और कमलोंसे मंडित सरोवर थे । यहां मिनेन्द्र भगवानके अनुपम चैत्यालय भी थे । यह दक्षिण दिशाका तिलकरूप नगर था । मेघवाहन आनन्दसे यहां रहने लगे थे। इसके साथ ही उनको पाताल लँका भी मिली थी। यह धरतीके बीचमें थी और इसका मुख्य नगर अलंकारोदयपुर ६ योनन औंडा और १३१॥ योनन चौड़ा था । मेघवाहनने लंका तो अपनी रानधानी बनाई और पाताललंका भय निवारणका स्थान नियत किया । जिस समय मेघवाहन विमानमें बैठकर लंकाको चले थे तो उनको बीचमें श्यामवर्णका लवण समुद्र पड़ा था। मेघवाहन महारक्षको राज्यदे मुनि हुए । महारक्षके अमररक्ष उदधिरक्ष, भानुरक्ष ये तीन पुत्र हुए । महारक्ष भी दीक्षा ले गए, सो अमररक्षक राजा हुये और युवरान पदपर भानुरक्ष नियत हुये। अमररक्षका विवाह किन्नरनाद नगरके श्रीधर विद्याधर राजाकी पुत्री अरिजयासे हुआ था। गंधर्वगीत नगरके सुरसन्निभ रानाकी गंधर्वा पुत्री भानुरक्षने परणी थी। बड़े भाईके दशपुत्र और छह पुत्री थीं इतने ही संतान छोटे भाईके थे । पुत्रोंने अपने २ नामके नगर बसाये सो कुल इसप्रकार थे: १ सन्ध्याकार, २ सुदेव, ३ मनोद्वाद, ४ मनोहर, ५ हंसद्वीप, ६ हरि, ७ जोध, ८ समुद्र, ९ कांचन १० अर्धस्वर्म, ११ आवर्त, १२ विघट, १३ अम्मोद, १४ उत्कट, १५ स्फुट, १६ रतुगृह, १७ तद्य, १८ तोय, १९ आवली और २० रन द्वीप । अमररक्ष और भानुरक्ष भी मुनि होगए । उपरान्त बहुत
SR No.022598
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1928
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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