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________________ धरणेन्द्र-पद्मावती कृतज्ञता-ज्ञापन । [१४१ मिलता है। जिससे भी वहां नागेन्द्रका वास प्रमाणित होता है ! परन्तु क्या यह नागेन्द्र नागकुमारोंके इन्द्र धरणेन्द्र ही थे, यह मानना जरा कठिन है, क्योंकि धरणेन्द्र निनशासनका परमभक्त बतलाया गया है। अतएव जब सम्राट् सगरके पुत्र श्री कैलाशपरके भरतराजाके बनवाये हुये चैत्यालयोंकी रक्षाके निमित्त खाई खोद रहे थे तो फिर भला एक शासनभक्त देव किस तरह उनपर कोप कर सक्ता था ? और यहांतककि उनके प्राणों-सम्यग्दृष्ठियोंके प्राणों तकको अपहरण कर लेता ! फिर उनका उल्लेख वहां केवल नागेन्द्र अथवा नागराजके रूपमें है जिससे धरणेन्द्रका ही भाव लगाना जरा कठिन है । इस तरह यह बिल्कुल संभव है कि वह नागराज नागवंशी विद्याधरोंका राजा हो; जैसे कि उसे नेपालके इतिहासमें भी बतलाया गया है। नेपालके इतिहासमें भी नागोंका सम्बन्ध बहुत ही प्राचीनकाल अर्थात हिन्दुओंके त्रेता और सतयुगसे बतलाया है। त्रेतायुगमें एक 'सत्व' बुद्ध का आगमन वहांपर हुआ था। उसने नागहृदको सुखा दिया, जिससे लाखों नाग निकलकर भागे। आखिर सत्वने उनके राजा करकोटक नागको रहनेको कहा और उनके रहनेको एक बड़ा तालाव बतला दिया एवं उनको धनेन्द्र बना दिया । नेपालकी इस कथाका भाव यही है कि वहांपर नागराजाओंका प्राबल्य था, जिनको सत्व नामक व्यक्तिने परास्त कर दिया । बहुतेरे नाग तो अपने देशको भाग गये; परन्तु प्राचीन क्षत्रियोंकी भांति सत्वने उनके राजाको वहां रहने दिया और उसे अर्थ-सचिव बना दिया । करकोटक नाग कैस्पियन समुद्रके किनारे १-दी हिस्ट्री ऑफ नेपाल पृ० ७९ ।
SR No.022598
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1928
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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