SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२६] भगवान पार्श्वनाथ । उसी तरह कायक्लेश भोगकर संसारकी अग्निमें ही जलकर भस्म हो जाते हैं।'* सम्यश्रद्धान और सम्यग्ज्ञानके विना आचार निष्फल है। मैं तुम्हारी हितकी ही कह रहा हूं, इस हिंसामई कायक्लेशको छोड़ो और जिनेन्द्र भगवानके बताये हुये मुक्तिमार्गका रास्ता गृहण करो।" हत्भाग्यसे भगवानके इन हितमई वचनोंका भी असर उस तापसपर कुछ भी नहीं हुआ । दुर्जन कभी भी सदुपदेशको ग्रहण करते नहीं देखे गये हैं। भगवान जिनेन्द्र अपने राजमहलमें लौट आये और आनन्दमग्न हो कालक्षेपण करने लगे। वह तापसी कायक्लेशके प्रभावसे मरकर संवर नामक भवनवासी देव हुआ। (११) धरणेन्द्र-पद्मावती-कृतज्ञता-ज्ञापन । 'पद्मावती च धरणश्च कृतोपकारं । तत्कालत्जातमविधं प्रणिधाय बुद्ध्वा । आनम्रमौलि रुचिरच्छविचर्चितांधि । मानर्चतुः सुरतरु प्रसवैजिनेंद्रम् ।। ८७ ॥' -श्री पार्श्वचरित । बनारसके वनमें आये हुये तापस महीपालकी कृपासे एक सर्पयुगलके प्राणान्त भगवान पार्श्वनाथके समागममें हुये थे, पूर्व परिच्छेदमें यह परिचय प्राप्त होचुका है । वस्तुतः उन मरणासन्न सर्पयुगलको राजकुमार पार्श्वनाथने धर्मोपदेश सुनाकर सुगतिमें पधरा दिया । णमोकार मंत्रके श्रवण मात्रसे उनके परिणाम सम * 'भगवान पार्श्वनाथ' (सागर) पृ. २७ ।
SR No.022598
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1928
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy