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________________ बनारस और राजा विश्वसेन । [१०१ वह सीधे यहीं आये थे और यहांपर जो उनके पहले साथी तपस्या कर रहे थे उनको अपने मतमें दीक्षित किया था। यह घटना भगवान पार्श्वनाथके निर्वाण होनेके उपरांतकी है। वैसे इससे पहलेके भी उल्लेख बौद्धशास्त्रोंमें हैं; जहां वे म० बुद्धके पूर्वभवोंका निक्र करते हुये बनारसका सम्बन्ध प्रगट करते हैं । शाक्यवंशकी उत्पत्तिमें भी काशीका सम्बन्ध उनके 'महावस्तु' नामक शास्त्रमें बतलाया गया है, तथापि कोल्यिवंशके विषयमें भी ऐसा ही उल्लेख उनके शास्त्रोंमें है। 'सुमंगलाविलासिनी' (ट ० २६०-२६२) में लिखा हुआ है कि राजा ओक्काककी बड़ी पुत्रीको कुष्टरोग हो गया । उसके भाई इस संक्रामक रोगसे भयभीत हुये । उन्होंने अपनी बहिनको लेजाकर एक गहन वनमें कैद कर दिया । उधर बनारसके राजा रामको भी कुष्टरोग होगया। वह घरको छोड़कर उसी वनमें भटकने लगा । अकस्मात् वनवृक्षोंके फल खानेसे उसका रोम नष्ट होगया। इसी बीचमें उसने ओकांककी पुत्रीको पा लिया । उसे भी उसने उस वनवृक्षके फल खिलाकर अच्छा कर लिया और उसको अपनी पत्नी बना लिया। राजाने उसी वनमें एक कोल वृक्षको हटाकर नगर बसा लिया और उसीमें रहने लगा। अन्ततः वह नगर कोलनगर कहलाने लगा और उसकी सन्तान 'कोल्यि' नामसे प्रसिद्ध हुई। परन्तु उनके ' महावस्तु ' में इससे विभिन्न एक अन्यकथा इस वंशकी उत्पत्तिमें दी हुई है। अस्तु; इतना प्रगट है कि काशीमें भी कोई राम नामक राजा होचुके हैं। जैनियोंके १-देखो ‘भगवान महावीर और मबुद्ध' पृ० ७७ । २-सम क्षत्रिम ट्राइस ऑफ एनशियेन्ट इन्डिया पृ. १७४-१७५। ३-पूर्व पुस्तक ५० २०६ । ४-पूर्व० पृ० २०७ ।
SR No.022598
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1928
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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