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________________ १०० ] भगवान पार्श्वनाथ | होते बतलाया गया है, वह भी ऐतिहासिक सत्य है । इसतरह ब्राह्मणोंके बनारस अधिपति दिवोदासका वर्णन है, जिसका सम्बन्ध भगवान पार्श्वनाथसे प्रकट होता है। उससे भी भगवानका जन्मस्थान बनारस सिद्ध होता है और यह भी स्पष्ट होजाता है कि उस समय वह अवश्य ही संसारभर में सर्वोत्तम नगर था कि ब्रह्माने उसे ही संसारभर के राज्यकी राजधानी नियत की, तथापि यह भी प्रकट है कि वहांसे ब्राह्मणधर्मका प्रभुत्व हट गया था और जैनधर्मकी प्रधानता थी । सचमुच ब्राह्मण कालमें उत्तरीय भारतके कुरु, पाञ्चाल, कौशल, काशी और विदेह ही विख्यात राज्य थे। इनमें से कुरू और पाञ्चालोंकी तथा दूसरी ओर कौशल, काशी और विदेहों की आपस में मित्रता थी । कुरु- पाञ्चालों और शेष तीनों राज्योंका पारस्परिक सम्बन्ध कटुता लिए था । उपरान्त बौद्धकाल में काशी बज्जियन संघ में सम्मिलित थी, यह बात हमें 'कल्पसूत्र' के कथनसे विदित होती है । उसमें कहा गया है कि जिस रातको भगवान महावीर निर्वाण लाभ कर सिद्ध, बुद्ध मुक्त हुए उस रात्रिको काशी कौशलके अठारह संयुक्त राजा, नौ लिच्छवि, और नौ मल्लिकोंने अमावस रोज दीपोत्सव मनाया था । " बौद्धोंका सम्बन्ध भी वनारससे बहुत कुछ रहा है । उनके शास्त्रों में भी इसका वर्णन खूब मिलता है। स्वयं म० बुद्धने बौद्धधर्मका नवारोपण यहींसे किया था । सम्बुद्ध होनेपर १- पबलिक एडमिनिस्ट्रेशन इन एनशियेन्ट इन्डिया पृ० ५४-५५ । २-कल्पसूत्र ( S. B. EVol. XXII. ) पृ० २६६ ॥
SR No.022598
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1928
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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