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________________ (४२) श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला. धम्मकहाओ, इहलोइयपरलोइया इड्डिविसेसा, भोगपरिचाया, पवज्जाओ, परिआया, सुयपरिग्गहाँ, तवोवहाणाई, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाई, पाओवगमणाई, देवलोगगमणाई, सुकुलपच्चायाईओ, पुणबोहिलामा, अंतकिरियाओ य आघविज्जंति, दस धम्मकहाणं वग्गा, तत्थ णं एगमेगाए धम्मकहाए पंच पंच अक्खाइयासयाई, एगमेगाए अक्खाइयाए पंच पंच उवाक्खाइया सयाई एगमेगाए उवक्खाइयाए पंच पंच अक्खाइयउवक्खाइयासयाई एवामेव सपुवावरेणं अधुट्ठाओ कहाणगकोडीओ हवंतित्ति समक्लायं । नायाधम्मकहाणं परित्ता वायणा, संखिज्जा अणुओगदारा, संखिज्जा वेढा, संखिज्जा सिलोगा, संखिजाओ निज्जुत्तीओ संगहणीओ, संखिज्जाओ पडिवत्तीओ । से णं अंगट्ठयाए छठे अंगे, दो सुयखंधा, एगूणवीसं अज्झयणा, एगृणवीसं समुद्देसणकाला, संखेज्जा पयसहस्सा पयग्गेणं, संखेज्जा अक्रवरा अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासयकडनिबद्धनिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आपविजंति पण्णविज्जंति परूविज्जंति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जंति, से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरणकरणपरूवणा आघविज्जइ, से तं नायाधम्मकहाओ ६ ॥ सू० ॥ ५० ॥ से किं तं उवालगदसाओ? उवासगदसा. मुणं समणोवासयाणं नगराई. उज्जाणाई, चेइयाई, वणसंडाई, समोसरणाई, रायाणो, अम्मापिवरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ इहलोइयपरलोइया इड्डिविसेसा, भोगपरिच्चाया, पवज्जाओ, परिआगा, सुयपरिग्गहा, तवोवहागाई सीलवयगुणवेरमणपञ्चक्खाणपोसहोववासपडिवज्जणया, पडिमाओ, उवसग्गा, संलेहणाओ, भत्तपञ्चक्खांणाई, पाओवगमणाई, देवलोगगमणाई, सुकुलपच्चाईओ, पुणबोहिलाभा, अंतकिरियाओ आघविज्जति; उवासगदसाणं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ संखेजाओ संगहणीओ, संखेजाओ पडिवत्तीओ। से गं अंगट्टयाए सत्तमे अंगे, एगे, एगे सुयक्खंथे, दस अज्झनणा, दस उद्देसणकाला, दस समुद्देसणकाला संखेजा पयसहस्सा पयग्गेणं संखेजा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पजवा, परित्ता तसा अणंता थावरा, सासयकडनिबद्धनिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविजंति पन्नविजति परूविजंति देसिजति, निदंसिज्जंति, उवदंसिजंति, से एवं आया, एवं नाया, एवं विन्नाया, एवं चरणकरणपरूवणा आघविजइ; से उवासगदसाओ ७ ॥ सू० ॥ ५१॥ सं किं तं अंतगडदसाओ ? अंतगडदसासु णं अंतगडाणं नगराई उज्जाणाई, चेइयाई, वणसंडाई, समोसरणाई, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइयपरलोइया इड्डिविसेसा, भोगपरिच्चागा, पवज्जाओ परिआगा, सुयपरिग्गहा तवोवहाणाई, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाई, पाओवगमणाई, अंतकिरियाओ, आघविजंति; अंतगडदसासु णं परित्ता वायणा, संखिजा अणुओगदारा, संखेजा वेढा, संखेजा सिलोगा, संखेजाओ निजुत्तीओ, संखेजाओ संगहणी, संखेजाओ पडिव. त्तीओ से णं अंगठ्ठयाए अहमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, अट्ठवग्गा अट्ठ उद्देसणकाला, अट्ठ समुद्देसणकाला संखेजा पयसहस्सा पयग्गेणं; संखेजा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पजवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासयकडनिबद्ध निकाइया जिणपण्णत्ता भावा आपविजंति, पन्नविजंति परूविजंति, डंसिजंति, निदंसिज्जंति, उवदंसिज्जंति; से एवं आया, एवं नाया, एवं विनाया, एवं चरणकरणपरूवणा आधविजह से त अंतगडदसाओ ८ ॥ सू० ॥ ५२ ।। से किं तं अणुत्तरोववाइयदसाओ?
SR No.022589
Book TitleDashvaikalaik Nandi Uvavai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Hansraj
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages50
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_dashvaikalik, & agam_nandisutra
File Size9 MB
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