SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥ श्री नन्दीसूत्र मूलपाठः ॥ सिजति, उवदंसिज्जति, से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरणकरणपरूवणा आघविजइ, से तं सूयगडे २ ।। सू० ॥ ४६॥ से किं तं ठाणे ? ठाणे णं जीवा ठाविजंति, अजीवा ठाविनंति, जीवाजीवा ठाविजंति, ससमए ठाविजइ, परसमए ठाविजइ, ससमयपरसमएठाविजइ, लोएठाविज्जइ, अलोए ठोविज्जइ, लोयालोए ठाविज्जइ। ठाणे णं टंका, कूडा, सेला, सिहरिणो, पब्भारा, कुंडाई, गुहाओ, आगरा, दहा, नईओ, आघविजंति । ठाणे णं एगाइयाए एगुत्तरियाए वुड्डीए दसट्ठाणगविवड्डियाणं भावाणं परूवणा आधविजइ। ठाणे णं परित्ता वायणा, संखेजा अणु. ओगदारा, संखेजा वेढा, संखेजा सिलोगा, संखेजाओ निज्जुत्तीओ, संखेजाओ संगहणीओ संखेज्जाओ पडिवत्तीओ से णं अंगट्ठयाए तइए अंगे, एगे सुयक्वंधे, दसअज्झयणा एगवीसं उद्देसणकाला, एकवीसं समुद्देसणकाला, बावत्तरि पयसहस्सा पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणता पजवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासयकडनिबद्धनिकाइया जिणपन्नत्ता भावा आघविजंति, पन्नविजंति, परूविजंति, दंसिज्जंति, निर्देसिज्जंति, उवदंसिज्जंति । से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया एवं चरणकरणपरूवणा आघविजइ, से तं ठाणे ३ ॥ सू० ॥ ४७ ॥ से किं तं समवाए ? समवाए णं जीवा समासिजंति, अजीवा समासिजंति, जीवाजीवा समासिजेति, ससमए समासिज्जइ, परसमए समासिज्जइ, ससमयपरसमए समासिजइ, लोए समासिजइ, अलोए समासिज्जइ लोयालोए समासिज्जइ। समवाए णं एगाइयाणं एगुत्तरियाणं ठाणसयविवड़ियाणं भावाणं परवणा आपविजइ; दुवालसविहस्स य गणिपिढगस्स पल्लवगे समासिजइ, समवायस्स णं परित्ता वायणा, संखिज्जा अणुओगदारा, संखिजा वेढा, संखिजा सिलोगा, संखिजाओ, निज्जुत्तीओ, संखिज्जाओ संगहणीओ, संखिज्जाओ, पडिवत्तीओ, से णं अंगठ्ठयाएचउत्थे अंगे, एगे सुयक्खंधे, एगे अज्झयणे, एगे उद्देसणकाले, एगे समुद्देसणकाले, एगे चोयाले सयसहस्से पयग्गेणं; संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पजवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासयकडनिबद्धनिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आपविजंति, पण्णविज्जति, परूविज्जति, दंसिज्जंति, निदसिज्जति, उचदं सिजंति से एवं आया,एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरणकरणपरूवणा आधविजइ । से तं समवाए ४ सू०॥४८॥ से किं तं विवाहे? विवाहे णं जीवा विआहिज्जंति, अजीवा विआहिज्जति, जीवाजीवा विआहिज्जंति, ससमए विआहिज्जति, परसमए विहिजति, ससमएपरसमए विआहिज्जति, लोए विआहिज्जति, अलोए विआहिज्जति, लोयालोए विआहि जति, विवाहस्सगं परित्ता वायणा, संखिज्जा अणुओगदारा. संखिज्जा वेढा, संखिज्जा सिलोगा, संखिजाओ निज्जुत्तीओ, संखिज्जाओ संगहणीओ, संखिजाओ पडिवत्तीओ, से णं अंगट्ठयाए पंचमे अंगे, एगे मुयक्खंधे, एगे साइरेगे अज्झयणसए, दस उद्देसगसहस्साई समुद्देसगसहस्साइं, छत्तीसं वागरणसहस्साई, दो लक्खा अट्ठासीइं पयसहस्साई पयग्गेणं, संखिज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता यावरा. सासय कडनिबद्धनिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आपविजंति, पण्णविज्जंति, परूविज्जंति, दंसिज्जति, निदंसिज्जति, उवदंसिज्जति, से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरणकरणपरूवण' आघविज्जइ, से तं विवाहे ५ ॥ सू० ॥ ४९ ॥ से किं तं नायाधम्मकहाओ ? नायधम्मकहासु ण नायाणं नगराई, उज्जाणाई, चेइयाई, वणसंडाई, समोसरणाई, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया,
SR No.022589
Book TitleDashvaikalaik Nandi Uvavai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Hansraj
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages50
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_dashvaikalik, & agam_nandisutra
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy