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________________ ज कहेली छे. आ प्रमाणे त्रणे प्रकारो समजी ते प्रमाणे आचरण करवा प्रयत्न करवो. आ संबंधमां विशेष एटलुं जाणवू के-कथानो उपदेशक के सांभळनार जो राग-द्वेषथी युक्त होय तो ते कथांतर बनी जाय छे एटले कथा पण विकथारूपे बनी जाय छे. अहीं प्रसंगोपात्त जणावेल गाथाओ श्रीदशवैकालिक नियुक्तिनी छे. ___ आपणे पूर्वे जोई गया छीए के आचार्य जो विकथा करे तो ते उन्मार्गगामी कहेवाय. हवे ते विकथानुं स्वरूप अने प्रकारो संबंधी वर्णन करतां जणावे छे के–“विकहा सत्तहा पन्नता तंजहा-इत्थिकहा १ भत्तकहा, २ देसकहा ३ रायकहा ४ मिउकालुणिया ५ दंसणभेइणी ६ चरित्तभेइणी ७॥' विकथा सात प्रकारनी छे– १. स्त्रीकथा, २. भोजनकथा, ३. देशकथा, ४. राजकथा, ५. मृदुकारुणिकी, ६. दर्शनभेदिनी अने ७. चारित्रभेदिनी कथा. १. स्त्रीकथा - स्त्री संबंधी कथा करवी. स्त्रीनी प्रशंसा करतां कहे के अमुक जातिनी स्त्री तो अतिशय रुपवंती होय छे, तेनो देह केळना स्थंभ जेवो घाटीलो अने पातळो छे, शरीर पुष्प जेवू सुकोमळ छे, चंद्रना मंडळ सरखं तेनुं कांतिमान मुख छे, कमळना पत्र जेवी अगर तो मृगना नेत्र जेवी तेनी आंखो छे, जेनो कटिप्रदेश सिंहनी केड जेवो पातळो छे, स्तन कळश जेवा उन्नत-ऊंचा ने पुष्ट छे, विलासी हाथीनी जेवी मंदगति छे. आ प्रमाणे स्त्रीनी प्रशंसा करे तो पण ते विकथा छे. प्रशंसा न करतां निंदापूर्वक कहे छे के- आ स्त्रीनी गति तो ऊंट जेवी वक्र छे, कागडानी माफक वाणी कर्कश छे, गर्दभ जेवो अशुभ स्वर छे, कदरूपा स्वरूपवाळी छे, आवी अपशुकनियाळ स्त्रीमुख कोण जुए? आ प्रमाणे निंदा करे तो पण ते विकथा ज छे. ____ आप्रमाणे स्त्रीकथा करवाथी पोताने तेमज सांभळनारने मोहनी प्रगटे, कामविकार जागृत थाय छे, मननी लागणीओ चळ-विचळ बने. वळी अन्य कोई सांभळे तो तेने विचार थाय के साधु संसारनो त्याग करी वैरागी बन्या छतां स्त्रीकथा करे छे, स्त्रीनी वार्तामां आसक्ति धरावे छे माटे आ साधु कुशील जणाय छे. वळी आवी कथा करवाथी विशेष समय तेमां व्यतीत थवाने कारणे स्वाध्यायनी हानि थाय, संयमनी हानि थाय अने ब्रह्मचर्यनी* नव वाडमां पण भंग पडे. सांभळनारनुं पण मन विपरीत मार्गे प्रेराय तो तेना दोषना भागीदार थवाय माटे स्त्रीकथानो सदंतर त्याग करवो. * जेम उद्यान अगर बगीचानुं रक्षण करवा माटे कांटानी अगर तो बीजी कोई वाड करवामां आवे छे तेम शास्त्रकारोए ब्रह्मचर्यरूपी उपवनना रक्षण माटे नव प्रकारनी वाडो (गुप्ति) कही छे, ते आ प्रमाणे १ स्त्री, पशु के नपुंसकनो निवास होय त्यां वसवाट न करवो-रहेवं नहीं. २ स्त्रीनी कथा न करवी अगर तो स्त्रीनी साथे एकांतमां वात न करवी. ३ स्त्रीओना आसन पर एटले शयन, आसन, पाट-पाटला ऊपर ज्यां स्त्री बेठी होय ते स्थान पर बे घडी जेटलो समय व्यतीत थया पहेलां बेसबुं नहीं. ४ स्त्रीओनां अंगोपांग जोवा के चिंतववां नहीं. ५ भीत, पडदा के खपेडाना ओथे स्त्री-पुरुष कामक्रीडा करता होय त्यां बेसवं नहीं. ६ पूर्वे करेल कामभोगनु-काम-क्रीड़ा, स्मरण न करवू. ७ स्निग्ध-रसकसवाळो आहार न करवो. ८ क्षुधा शांत थाय तेथी विशेष आहार करवो नहीं.. ९ शरीरनी विभूषा - शोभा करवी नहीं, श्रृंगारवडे टापटीप करवी नहीं. श्रीगच्छाचार-पयन्ना-५३
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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