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________________ फेलाणी हती. संग्राममां पोताना शत्रु राजाओना हस्तीओना गण्डस्थळ फोडी नाखवाथी तेणे पोतान नाम सार्थक कर्यु हतुं. त्रण खंडना अधिपति प्रतिवासुदेव जरासंधे तेने सेवामां बोलाव्यो होवाथी ते राजगृही नगरीए गया तेवामा लाग जोईने पांडवोए तेनो राज्यप्रदेश लूटी लीधो. आ समाचार दमदंतने मळतां ज तेणे मोठे सैन्य लई, लवणसमुद्र जेम जंबूद्वीपने फरी वळे तेम हस्तिनापुर नगरने घेरी लीधुं. पांडवो सामे युद्ध करवा आवी शक्या नहीं. दमदंते दूत मोकली कहेवराव्यु के- तमे तो कायरना जेवू काम कर्यु छे, कारण के का छे के–“छलमुचियं कीवाणं, कीवाणव धणियविरहिए ठाणे । बलवंताण नराणं, न एस मग्गो सुवंसाण ॥१॥" स्वामी विनाना प्रदेशमा आवी तेने लूटवू ए कायरोनुं काम छे. जे शूरवीर होय छे अने श्रेष्ठकुलमां उत्पन्न थयेल छे तेनो आ मार्ग नथी-ते तो सिंह सामे बाथ भीडे. मारी गेरहाजरीमा तमे मारो प्रदेश लूट्यो ते तो शियाळना जेवू काम कर्यु. खरेखरा शूरवीर हो तो मारी सामे संग्राम करो. पांडवो एटला बधा भयभीत बनी गया हता के नगरनो किल्लो बंध करीने अंदर बेसी गया. ___ दमदंते घणा वखत सुधी घेरो घाल्यो, छेवटे तेओना राज्यप्रदेशमा आण वर्तावीने पोताना नगरे पाछो वळ्यो. नीतिपूर्वक राज्य चलावतां केटलाक समय बाद ते नगरमां श्रीनेमिनाथ भगवंतना शिष्य श्रीधर्मघोषसूरि पधार्या. तेमनी सुरम्य वैराग्यमय अने असरकारक देशना सांभळी दमदंत राजवीने ज्ञानगर्भित वैराग्य उद्भव्यो. तेथी तेमणे दीक्षा लीधी. शास्त्राभ्यास करी तेओ गीतार्थ बन्या. तपश्चर्या तपी राजर्षी खरेखरा तपस्वी पण बन्या. तेमनो समभाव पराकाष्ठाए पहोंच्यो हतो. तेओ विहार करतां करतां एकदा हस्तिनापुर नगरनी बहारना उद्यानमां आवी काउसग्ग ध्याने ऊभा रह्या. एवामां पांडवो रयवाडीना अर्थे निकळ्या. दमदंत मुनीश्वरने जोतां ज युधिष्ठिर हस्ती ऊपरथी नीचे ऊतर्या अने भावपूर्वक वंदन कर्यु, थोडा वखत बाद दुर्योधन पण पोताना परिवार साथे त्यां आव्यो. मुनिने जोतां ज तेने द्वेष उत्पन्न थयो. 'आ मुनिए ज मारा बाप-दादानी आबरू नष्ट करी हती.' एम विचारीने रोषमां ने रोषमां तेणे पोताना हाथमा रहेल बीजोरुं फेंक्युं तेनुं अनुसरण करीने बीजा कौरवोए तेमज सैनिकोए ते मुनि प्रत्ये पत्थर आदि फेंक्या. ते बधानो एवो मोटो ढग थई गयो के दमदंत राजर्षि तेनी ओथे अदश्य जेवा बनी गया. थोडो समय वीत्या बाद युधिष्ठिर ए ज रस्ते पाछा फर्या. दमदंत राजर्षिना स्थाने तेमने न जोतां युधिष्ठिरे पोताना सैनिकने प्रश्न पूछ्यो के-अहीं राजर्षि काउसग्ग ध्यानमां ऊभा हतां ते क्यां गया? अने आ पत्थरादिक ढगलो क्याथी? सैनिके दुर्योधन संबंधी सर्व हकीकत संभळावी. जे सांभळतां ज युधिष्ठरने अतिशय दुःख थयु. तेमणे तरत ज पोताना सेवकवर्गने ते पत्थरादि दूर करवा आदेश फरमाव्यो. बाद अत्यंत चतुर अंग मसळवावाळाने सूचना आपी, मुनिना शरीरे मर्दन करावी तेमने सज्ज कर्या. बाद मुनिने खमावी, वंदन करी पांडवो स्वस्थाने गया. पांडवो अने कौरवोए पोतपोताने उचित वर्तन कर्यु परंतु दमदंत राजर्षिने न पांडवो ऊपर राग प्रगट्यो के न कौरवो प्रत्ये द्वेष उपज्यो. तेओ तो विचारता हता के–“एस मे सासओ अप्पा, श्रीगच्छाचार-पयन्ना- २५५
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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