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________________ उछाळतो-उछाळतो सुदर्शन तरफ आव्यो यक्षने आवतो जोई सुदर्शन श्रावके अंशमात्र भय के कंप अनुभव्या सिवाय उपसर्ग-सहन करवानी तैयारी करी अने ते स्थळे ऊभा रही, सागारिक अणशण स्वीकार्यं. ‘आ उपसर्गमांथी बचुं त्यारे ज कायोत्सर्ग पारुं; नहींतर मारे यावज्जीव चारे आहार तेमज प्राणातिपातादि अढारे पापस्थानकोना पच्चख्खाण छे.' सुदर्शननी श्रेष्ठ भावनाथी यक्ष तेने कंई पण उपद्रव करवा शक्तिमान थयो नहीं. हजार पल प्रमाण गदा लईने कायोत्सर्गमां रहेला श्रेष्ठीनी आसपास चारे बाजु फरवा लाग्यो. श्रेष्ठी काउसग्ग-ध्यानमा दृढ ज हता. छेवटे यक्ष कंटाळी, अर्जुनमालीना शरीरमाथी निकळी, पोतानी गदा लई जे दिशामांथी आव्यो हतो ते दिशामां चाल्यो गयो, एटले अर्जुनमालीनो देह तरत ज भूमि ऊपर पड्यो. ते एकाद मुहूर्त पछी सचेतन थयो. उपद्रव नाश पाम्यो जाणी सुदर्शने काउसग्ग पार्यो त्यारे अर्जुने तेने कह्यं के- हे देवानुप्रिय ! तमे कोण छो ? क्यांथी आव्या ? अने कई तरफ जाओ छो ? त्यारे सुदर्शने सर्व हकीकत आदिथी कही संभळावतां अर्जुने पण कह्यं के चालो, हुं पण तमारी साथे भगवन्त पासे आवुं छं. भगवन्तनी ते अमृतवाहिनी ने वैराग्यवासिनी धर्मदेशना सांभळी अर्जुनने पोताना कृत्यनो पश्चाताप थयो. देशना सांभळी सर्व लोको यथास्थाने गया पछी तेणे भगवन्त पासे आवी नम्रतापूर्वक दीक्षा आपवा प्रार्थना करी. बाद उत्तर दिशामा जई पंचमुष्टि लोच कर्यो अने साधु-जीवन शरु कर्यु. प्रभुए तेने साधु-धर्म उचित शिक्षा आपी. दीक्षा स्वीकारी ते दिवसथी ज अर्जुनमालीए परमात्मा पासे अभिग्रह धारण कर्यो के-छठ्ठ-छठ्ठनी तपश्चर्या करवी. आ प्रमाणे यावज्जीव महातपश्चर्या शरू करी. छठ्ठना पारणाना दिवसे पहेली पोरसीमां स्वाध्याय करे, बीजीमां ध्यान धरे अने त्रीजीमां पात्रानी पडिलेहणा करी, गौतमस्वामी तथा भगवन्तनी आज्ञा लई ईर्यासमितिपूर्वक नगरीमां गोचरीए जाय. नगरीमां गोचरी अर्थे परिभ्रमण करतां लोको कहेतां के-आ मुनिए मारा पिताने हण्या छे, कोई कहेता के मारी स्त्रीने हणी छे, एवी रीते विविध लोको पोतानी पुत्री, बहेन, पौत्र, भाई विगेरे स्वजनना नामो दर्शावी तेना घातक तरीके अर्जुनमाली मुनिने ओळखावता. केटलाक युवान तथा उछांछळा पुरुषो, लघु बाळकोद्वारा मुनिनी पाछळ पत्थरा पण उछळावता; छतां अर्जुनमाली मुनिवर सर्व समभावे सहन करी गोचरी अर्थे परिभ्रमण करतां. शुद्ध एषणीय गोचरी मळती ते लावीने, भगवन्तने के गौतमस्वामीने बतावीने आहार करतां अने पाछा पोताना स्वाध्यायमां तल्लीन बनी जता. जो गोचरी न मळती तो तप करता. आ प्रमाणे प्रतिदिनना व्यवहारथी अर्जुनमालीनुं चारित्र शुद्ध अने निष्कलंक बन्युं. थोडा समय पछी परमात्मा अन्यत्र विहार करी गया. अर्जुनमाली मुनि पण छ मास पर्यन्त साध्वाचार पाळी छेल्ले पखवाडीयानुं अणशण स्वीकारी अंतकृत्केवळी थई मोक्षवासी थया. जेवी रीते अर्जुनमालीए पौरजनोनो अपवाद सहन कर्यो, अने परीषह पण सारी पेठे सहन कर्यां तेवी ज रीते जे मुनिवर प्रसंगे पण कषायने उपशमावे तेवा साधुवाळा गच्छने ज सुगच्छ जाणवो. दमदंत राजर्षिनी कथा हस्तशीर्ष नगरमां दमदंत नामना राजवी हता. तेमना अतुल प्रतापथी तेमनी कीर्ति दिगंतमां श्रीगच्छाचार- पयन्ना— २५४ -
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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