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________________ थई गयुं अने छेवटे तेओ भण्या हता ते पण लगभग भूली जवा लाग्या. एवामां ज्यारे दुष्काळ दूर थई सुकाळ थयो त्यारे शासननी रक्षा माटे - भुलाई जतां श्रुतनुं संरक्षण करवा माटे वे स्थळोए संघ एकत्र थयो: एक वल्लभीपुरमा (हालनुं काठियावाडमां आवेल वळा गाम) अने बीजो मथुरा नगरीमां. वल्लभीपुरमां अध्यक्षता नागार्जुननी हती ज्यारे मथुरामां प्रमुखपद श्रीमान् स्कंदिलाचार्यनं हतुं. ते ओए बने तेटलुं श्रुतनुं संरक्षण कर्यु. आ बने आचार्यो समकालीन होवा छतां परस्परने मळी शक्या नहिं अने तेने कारणे तेओए करेली वाचनामां मतभेद रही जवा पाम्यो. पाछळथी ज्यारे श्रीमान् देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमणे आगमोने पुस्तकारूढ कर्या त्यारे आ मतभेदोनुं स्पष्टीकरण करवा तेमणे स्कंदिलाचार्यनी वाचना प्रमाणे आगमो लखाव्या अने * नागार्जुन वाचनानो विषय टीकामां अवतरित कर्यो. विस्मरण थयेला सूत्रने संग्रहित करवामां आवे त्यारे वाचनाभेद थाय ते स्वाभाविक छे. अत्यारे उपलब्ध थतां आगमग्रंथोमां अनुयोगद्वारादि आगमसूत्रो माथुरीवाचनाना छे ज्यारे ज्योतिषकरंडक वल्लभी वाचनानो ग्रंथ छे, एटले संख्या संबंधी तेना वर्णननी साथे अनुयोगद्वारमां दर्शावेल संख्या - वर्णन मळतुं न आवे ए स्वाभाविक छे, कारण के वाचनाभेद होवाथी तेम बनी जाय ते कल्पी शकाय तेवी हकीकत छे. आ उपरथी ते वस्तु खोटी छे एव शंका या विचिकित्सा कदी पण न करवी. आटला विवेचन उपरथी आपणे समजी शकशुं के जेवी रीते ज्योतिषकरंडक पूर्वधरप्रणीत छे तेम गच्छाचार पयन्नो पण पूर्वधररचित ज छे. आ विषयनी विशेष पुष्टि करतां श्रीमलयगिरिजी महाराज बीजो दाखलो आपे छे. श्री मलयगिरिजी नंदीसूत्रनी टीकामां कहे छे के – “तदेवमभीष्टदेवतास्तवादिसम्पादितसकलसौविहित्यो भगवान् दूषगणिपादोपसेवी पूर्वान्तर्गतसूत्रार्थधारको देववाचको योग्यविनेयपरीक्षां कृत्वा सम्प्रत्यधिकृताध्ययनविषयस्य ज्ञानस्य प्ररूपणां विदधाति - 'नाणं पञ्चविहं पण्णतं' इत्यादि” अर्थात् “ इष्टदेवनी स्तुति - प्रार्थनाथी सुविहितपणुं प्राप्त करनार श्री दूष गणिना चरणनी सेवा-उपासना करनार तेमज सूत्र तथा अर्थने जाणनार देववाचक नामना आचार्य योग्य शिष्यनी परीक्षा करीने अध्ययन विषयक पांच ज्ञाननी प्ररूपणा करे छे एटले के दूष गणिनो शिष्य हुं देववाचक नंदिसूत्रनी रचना करुं छं. तेमां पांच प्रकारनं ज्ञान वर्णववामां आव्युं छे.... इत्यादि.” आ प्रमाणे नंदीसूत्रना कर्ता तरीके श्री देववाचकनुं नाम मळी आववाथी श्री मलयगिरिजी महाराजे तेनो उल्लेख कर्यो छे. आ उपरथी ए सिद्ध थाय छे के नाम मळे तो कर्तानुं अभिधान जणावे अने न मळे तो न जणावे. जेम ज्योतिषकरंडकना कर्तानुं नाम उपलब्ध थई शकतुं न होवाथी ते जेम पूर्वधररचित छे तेम जणाव्यं तेवी रीते आ गच्छाचार पयन्नो पण पूर्वधररचित ज जाणी लेवो. वळी आ विषय परत्वे शंका करता कोई प्रश्न करे के जो तमे एम कहेता हो के आ गच्छाचार युगप्रधान नागार्जुननी अध्यक्षतामां वल्लभी वाचना थई अने तेने अंगे नागार्जुन विशेष प्रख्याति पाम्या, वल्लभी वाचनाने “नागार्जुनी वाचना" पण कहेवामां आवे छे. “वाचना" ए शब्द पारिभाषिक छे अने तेनो अर्थ " भणाववुं ते " थाय छे.वी.नि.सं. १३०मां श्रीभद्रबाहुस्वामीना समयमां पाटलीपुत्रमां वाचना थई हती. त्यारबाद आ वल्लभी तेमज माथुरी वाचना समकाळे थई हती. नागार्जुन धुरंधर ने प्रभाविक आचार्य हता अने वी.नि.सं. ८९९ मां तेमनो स्वर्गवास थयो हतो. श्रीगच्छाचार - पयन्ना— १२ *
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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