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________________ नामनी वेश्याने घणुं द्रव्य आपी वश करी. एकदा सार्थवाहे कामपताकाने पूछ्यु के-हमणां राजा राजकार्यमां शिथिल मनवाळो केम जणाय छे ? कामपताकाए का के-हुं कई विशेष जाणती नथी, परंतु अंत:पुरमां एवी वात चाले छ के-राजा भोयरामा राखेली एक रूपवंती राजकन्याना मोहमां पड्यो छे, बीजी राणीओनी खबर पण लेतो नथी अने तेथी राजकाजमां पण मंदता आवी जणाय ___ अनंगदेवने पण पातालसुंदरी जोवानुं मन थयु. जेणे सूर्यने पण देख्यो नथी एवी ते राजकन्या केवी गुणवंती ने रूपाळी हशे? लाग मळे तो मारे प्रेम पण करवो, एवो निर्णय करी अनंगदेवे प्रतिदिन विविध भेटणां धरी राजानुं मन वश करी लीधुं अने अंत:पुरमां पण एकलो जाव-आव करी शके तेवो विश्वास संपादन करी लीधो. क्रमे क्रमे भोयरानुं स्थान विगेरे जाणी लीधुं. बाद पोताना महेलथी भोयरा सुधी एक सुरंग पण खोदावी. एक दिवसे राजाना पाताळसुंदरी पासेथी जवा बाद अनंगदेव सुरंगद्वारा त्यां गयो. जुए छे तो पाताळसुंदरी ऊंघे छे. तेनुं स्वरूप जोई अनंगदेव घडीभर तो जाणे चित्रित होय तेम स्थिर थई गयो. बाद तेनी पासे जई, कोमळ वचनथी बोलावी तेने जाग्रत करी. कोई पण वखत राजा सिवाय अन्य पुरुषने जोयेल नहीं होवाथी पाताळसुंदरी अनंगदेवने जोतां ज विस्मय पामी. धीमे धीमे परिचय अने वार्तालाप थतां अनुराग वध्यो अने बन्ने परस्पर प्रेमी पण बन्या. धीमे धीमे गाढ प्रेम जामतां अनंगदेव- मन शंका रहित बनी गयुं एटले राजाना जवा बाद ते प्रतिदिन पातालसुंदरी पासे जवा लाग्यो. एकदा पातालसुंदरीए का के-मने तारा प्रासादे लई जई नगररचना देखाड. अनंगदेव तेने पोताना आवासे लई गयो. पातालसुंदरी गवाक्षमां बेसी नगरचर्चा जोवे छे तेवामां राजा पण हस्ती ऊपर बेसी आडम्बरपूर्वक उद्यानमां गयो. तेने जोई पातालसुंदरी विचारवा लागी के-मने केदीनी माफक भोयरामां छानी राखे छे अने पोते यथेच्छ विहार करे छे. राजाने पण हुं मारी चतुराई बतायूँ तो ज खरी. आ प्रमाणे दृढ निर्णय करी पातालसुंदरीए सार्थवाहने का के-राजाने तारा घरे जमवानुं आमन्त्रण आप. हुं बधी रसोई तेने जाते ज पीरसीश. तेनुं कथन सांभळी अनंगदेव तो दिग्मूढ ज थई गयो. अने अनंगदेव बोल्यो के-राजाने आमंत्रण आपी तारे मने यमदेवनो अतिथि बनाववो छे के महाअनर्थ उत्पन्न करवो छ ? तेम पूछतां पातालसुंदरीए का – तुं शा माटे भय पामे छे? वाणियानी जात डरपोक कही छे ते खोटं नथी. हुं कहुं छु तेम कर, नहिं तो तने पण मारे हाथ बताववो पडशे. राजाने हुशियारी अने अभिमान बहु ज छे, माटे तेनुं अभिमान उतारदुं छे. छेवटे सार्थवाहे राजाने आमन्त्रण आप्यु. ___पछी भोजनसमये पातालसुंदरी पोतानी हम्मेशनी साडी पहेरी राजाने पीरसवा लागी. राजानी तेना तरफ नजर जतां ते विचारमां पडी गयो के-आ पातालसुंदरी अहीं क्यांथी? हमणां ज हुं भोयरामांथी चाल्यो आq छु अने अहीं पण तेने ज देखें छु तो आ शुं? पण आ तो पातालसुंदरी जेवा स्वरूपवाळी अनंगदेवनी स्त्री हशे एम विचारी मन वाळ्युं. बीजी वार पण ते ज पीरसवा आवी अने राजानुं मन चकडोळे चड्यु. जमतां जमतां स्खलना थवा लागी. पातालसुंदरीथी कशुं अजाण्यु श्रीगच्छाचार-पयन्ना- २४८
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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