SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 262
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ थती पोताना आवासे गई अने आर्तध्यानना योगथी प्रतिदिन झुरवा लागी. तेने परिणामे तेने अळस नामनो व्याधि थयो अने बराबर सातमे दिवसे मृत्यु पामी नारकीमां गई. आ बाजु पृथ्वी ऊपर उपकार करता करतां भगवंत श्रीमहावीरस्वामी ते नगरीमां समवसर्या. पर्षदा एकत्र थई अने भगवंते उपदेश आप्यो. पर्षदाना विसर्जन बाद भगवंते गौतमस्वामीने का के-हे गौतम ! आ नगरीमा महाशतक श्रावक अणशण स्वीकारीने पोतानी पौषधशाळामा रहेल छे. तेणे पोतानी पत्नी रेवतीने कठोर वचन का हतुं. अणशण स्वीकार्या पछी साचुं होय तो पण अनिष्ट अने अप्रिय वचनो कोईने पण न कहेवां जोईए, क्रोध पण न करवो घटे, माटे तमे तेमनी पासे जाओ अने प्रायश्चित आपी तेनी शुद्धि करो. भगवंतनुं वचन स्वीकारी गौतमस्वामी महाशतकनी पौषधशाळा तरफ चाल्या. गौतमस्वामीने आवतां जोई महाशतक श्रावक अतीव आनंदित थयो. बाद, गोतमस्वामीए भगवंते कहेल सर्व वृत्तांत जणावीने तेमने आलायणा आपी. वीस वर्ष पर्यन्त श्रमणोपासकपणं धारण करी, छेवटे साठ टंकनी मारणांतिक संलेखना स्वीकारी, काळधर्म पामी सौधर्म देवलोकमां अरुणवर्डिस नामना विमानमा चार पल्योपमने आउखे देव थयो. बाद त्यांथी च्यवी, महाविदेह क्षेत्रमा उत्पन्न थई मोक्षे जशे. आ कथानो सारांश ए छे के-स्त्रीजातिनो स्वभाव चंचळ होय छे माटे साध्वीनो संसर्ग न करवो तेमज तेनी पासे बेसबुं नहिं. स्त्री-चरित्र माटे पातालसुंदरी, कथानक पण बोधक छे, जे नीचे प्रमाणेपातालसुंदरीनी रसिक कथा विशाळापुरीना जयंतसेन राजाए एकदा गर्वथी पोताना सभाजनोने पूछयु के-एवी कोई कळा बाकी छे जेमां हुं निपुण न होउं? राजसभामां हाजी हा' कहेवावाळा घणा हता छतां एक सत्त्वशाली पुरुषे जणाव्यु के- राजन् ! आप हजी स्त्रीचरित्रनी कळा जाणी शक्या नथी. स्त्रीचरित्र आगळ देवो, दानवो, मंत्रतंत्रवादीओ विगेरे मुग्ध बन्या छे. जालंधरे स्त्रीने भोयरामा राखीने अनेक रक्षको रोक्यां तो पण ते जालंधरने छेतरी, भ्रष्टाचारी थई हती. राजा आ वात सांभळी आश्चर्य तो पाम्यो पण तेणे निर्णय कयों के-मारे हवे एक शुद्ध शियळवंत स्त्री साथे परणवू अने ते सती स्त्रीने भोयरामां राखीने हुं तेना सतीत्त्वनुं रक्षण करीश. बाद सामंतरायनी तरतनी जन्मेली एक स्वरूपवंत कन्या साथे ते परण्यो. राजमहेलमां एक गुप्त भोयरुं बनावी, तेमां तेने राखी अने धावमाताने पण तेनुं कार्य थई रह्या पछी विशेष बोलवा-चालवानो के बेसवानो निषेध को. अनुक्रमे ते यौवनावस्था पामी अने पाताळमां राखवाथी राजाए तेनुं पातालसुंदरी एवं नाम राख्यु. राजा तेनी साथे यथेच्छ विषयसुख भोगवे छे अने तेना निर्मळ शियलथी संतोष पामे छे, बीजी राणी करतां तेनुं अधिक सन्मान साचवे छे, राजकाजमां विशेष ध्यान आपतो नथी, राजसभामां पण मोडो आवी वहेलो चाल्यो जाय छे. ___एक समय त्यां रत्नद्वीपनो अनंमदेव नामनो व्यापारी विशालापुरी आव्यो अने राजाने आमळां जेवडां मोतीनो एक महामूल्यवान हार भेंट को. राजाए तेनुं दाण माफ कर्यु एटले व्यापार करतां तेने करोडो सोनैयानो लाभ थयो. ते नगरीमां तेणे पोतानुं मणिगृह बंधाव्यु अने राजानी कामपताका श्रीगच्छाचार-पयन्ना- २४७
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy