SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 219
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पोताना आत्माने पुष्ट करे छे तेनो आत्मा पण थोडा दिवसमां ज विनाश पामे छे. अहो ! शुं हुं असंख्य जीवोने हणीने मारा आत्माने संसारमा भमाडं? आत्माने माटे हिंसा करवी ते अतीव दुःखदायी छे. अहिंसा ज खरेखर भगवती-पूज्य अने सुखदाता छे. ते भगवती अहिंसाने अपरिमित ज्ञान-दर्शन धारण करनार, शीलवंत, शुद्ध संयम पालक १ श्रीतीर्थंकर भगवंतोए रुडे प्रकारे जोई छे, २ अवधिज्ञानीए भला प्रकारे जाणी छे, ३ ऋजुमतीमन:पर्यवज्ञानीए जोई छे, ४ विपुलमतिमन:पर्यवज्ञानीए रूडा प्रकारे जाणी छे, ५ चौदपूर्वधरे पठित करी छे, ६ वैक्रियलब्धिधारीए प्ररूपी छे तेम ज ७ मतिज्ञानी, ८ श्रुतज्ञानी, ९ मन:पर्यवज्ञानी, १० केवळज्ञानी, ११ आम|षधिलब्धिधारी, १२ खेल्लौषधिलब्धिधारी, १३ नल्लौषधिलब्धिधारी, १४ विपुडौषधिलब्धिधारी, १५ सौषधिलब्धिधारी, १६ बीजबुद्धिलब्धिधारी, १७ कोष्ठबुद्धिलब्धिधारी, १८ पदानुसारीलब्धिधारी, १९ संभिन्नश्रोतस्लब्धिधारी, २० श्रुतधर, २१ मनबली, २२ वचनबली, २३ कायबली, २४ ज्ञानबली, २५ दर्शनबली, २६ चारित्रबली, २७ क्षीराश्रवलब्धिधारी, २८ मध्वाश्रवलब्धिधारी, २९ सर्पियाश्रवलब्धिधारी, · ३० अक्षीणमहानसलब्धिधारी, ३१ चारणलब्धिधारी, ३२ * विद्याधर, ३३ चतुर्थ भक्त (एक उपवास) करनार, ३४ छ मासी तपश्चर्या करनार, ३५ उत्क्षिप्तचर, ३६ निक्षिप्तचर, ३७ अंतर्चर, ३८ पंतचर, ३९ लूखचर, ४० समुदानचर, ४१ अग्लान, ४२ मौनचर, ४३ संसत्त्ककल्पी, ४४ तज्जातसंसत्त्वकल्पी, ४५ उपनिषद्या, ४६ शुद्धषणक, ४७ संखादत्ती, ४८ दृष्टलाभी, ४९ अदृष्टलाभी, ५० पुष्टलाभी, ५१ आयंबिल करनार, ५२ पुरिमड्ढ करनार, ५३ एकासन करनार, ५४ निवि करनार, ५५ भिन्नपिण्डचारी, ५६ परिमितपिण्डचारी, ५७ अन्ताहारी, ५८ पन्ताहारी, ५९ अरसाहारी, ६० विरसाहारी, ६१ लूखाहारी, ६२ अन्तजीवी, ६३ पन्तजीवी, ६४ लूखजीवी, ६५ तुच्छजीवी, ६६ उपसन्तजीवी, ६७ पसन्तजीवी, ६८ विविक्तजीवी, ६९ अक्षीणमधुसपी, ७० अमद्यमांसभोक्ता,७१ पठाणा,७२ प्रिमा स्थापनारा, ७३ एक स्थानके रहेनारा,७७ लंगडानी रहेनारा, ७५ निषद्याए रहेनारा, ७६ लाकडीनी माफक रहेनारा, ७४ वीरासने रहेनारा, ७५ निषद्याए रहेनारा, ७६ लाकडीनी माफक रहेनारा, ७७ लंगडानी माफक सूनारा, ७८ एक पडखे सूनारा, ७९ आतप लेनारा, ८० अप्पा, ८१ खंखार (श्लेष्म) नहीं करनारा, ८२ खाज नहीं खणनारा, ८३ मस्तक, दाढी, मूछ, काखली विगेरेना वाळ न कपावनार तथा न धोनार इत्यादि अनेक महापुरुषोए “अहिंसा" भगवतीने रूडी कही छे, रूडी जाणी छे अने हिंसाने मिथ्या ज वर्णवी छे तो मारा अल्प जीवितने माटे आवी घोर हिसा हुं केम करुं? आ अल्प जीवितव्यने अर्थे हिंसा करी भवोभव- परिभ्रमण कोण वधारे ? आ प्रमाणे विचारी, समभावी थई, विशिष्ट वैराग्यवंत बनीने हाथमां ग्रहण करेल जळ पार्छ नदीमां मूकी दीधुं. पछी नदी उतरी, सामे कांठे जई, तृषाथी पीडित बनीने अणशण स्वीकार्यु अने नवकार मन्त्रना एकमात्र स्मरणपूर्वक काळ करी स्वर्गवासी थयो. देवशय्यामां उपजतां ज तेणे अवधिज्ञानद्वारा जोयुं तो पोतानो पूर्वभव दीठो. तरत ज क्षुल्लकना पडेला देहपिंजरमां * आ लब्धिओनं वर्णन पृष्ठ १९२ ऊपर वर्णवाई गयं छे. श्रीगच्छाचार–पयन्ना- २०४
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy