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________________ क्षुल्लक साधुनी कथा -- मालवदेशनी उज्जैनी नगरीमा धनमित्र नामनो व्यवहारी हतो. तेने धनधर्म नामनो पुत्र हतो. व्यवहारीनी पत्नी मरण पामतां तेने वैराग्य उपज्यो. तेवामां एक मुनिवर त्यां आव्या, एटले तेमनी पासे पुत्र सहित प्रव्रज्या ग्रहण करी. एकदा अन्य मुनिवरोनी साथे विहार करतां तेओ एलगत्थ नगरना मार्गे चाल्या. मध्याह्न समय हतो, सूर्य पोतानी संपूर्ण कळाथी प्रकाशी रह्यो हतो, रणनो प्रदेश हतो, तृषा सर्व मुनिवरोने पीडा उपजावी रही हती, अत्यंत तृषाथी क्षुल्लक धनधर्मनुं मुख करमवा लाग्युं, गति मंद पडी गई अने वारंवार स्खलना थवाथी ते क्षुल्लक मुनि पाछळ रही जवा लाग्या. धनमित्रे जाण्यु के पुत्रने तृषा पूरेपूरी सतावी रही छे, पण थाय शुं? तेओ तेनी साथे रहेवा लाग्या. बीजा मुनिवरो धीमे धीमे आगळ वधतां सहेज आगळ निकळी गया. धनमित्र ने धनधर्म मंद गतिए पाछळ पाछळ चाल्या जाय छे तेवामां एक नदी आवी. नदी जोतां ज धनमित्रने पुत्र प्रत्ये स्नेहभाव प्रगट्यो. पुत्र परत्वेना वात्सल्यभावथी प्रेराई तेणे तेने का-“हे पुत्र ! अत्यार सुधी तें परीषह सारी रीते सहन को छे, पण भाग्ययोगे जळ आवी मळ्युं छे तो तुं नदीमांथी यथेच्छ जळ पी ले. ज्यारे राजमार्ग चीकणो थई गयो होय त्यारे लोको केडी (पगदंडी) नो आश्रय ले छे. तुं सचित्त जळ पी ले. प्राण टकशे तो चारित्रनुं पालन थशे अने आ व्रतभंगनी आलोयण पण कराशे.” आ प्रमाणे धनमित्रे पुत्रने का छतां ज्यारे तेणे नदीनुंजळ पीधुं नहीं त्यारे तेणे विचार्यु के–मारी लज्जाने कारणे पुत्र जळ-पान करतां अचकाय छे तेथी हूं दूर जतो रहुं. आ प्रमाणे निर्णय करी, नदी उतरी थोडे दूर जई बेठो पण क्षुल्लक साधुए जळपान न कर्यु अने त्यां ज शुभ ध्यानमा मृत्यु पाम्यो. केटलाको आ संबंधमां एम पण कहे छे के–धनमित्रना गया पछी धनधर्मे विचार्यु के पिताए का ते सत्य छे. प्राण हशे तो चारित्र पळाशे, प्रायश्चित पण लेवाशे अने अन्य धार्मिक अनुष्ठानो पण थशे, माटे पाणी तो पीउं. आम विचारी जळनो खोबो भर्यो के तरत ज अन्य विचार उद्भव्यो के–माराथी अप्कायना जीवोनो नाश केम कराय? एक जीवना रक्षण माटे असंख्य जीवोनो विनाश करवो ए कोई पण प्रकारे उचित नथी. श्रीतीर्थंकर भगवंतोए जेनो निषेध कर्यो होय तेनुं आचरण माराथी थाय ज केम? न्यायात् पथ: प्रविचलन्ति पदं न धीरा: । धीरपुरुषोए कदापि काळे स्वप्रतिज्ञाथी अंशमात्र पण चलायमान न ज थq. का छे के–“एक्कम्मि उदगबिंदुम्मि, जे जीवा जिणवरेहिं पण्णत्ता । ते पारेवयमित्ता, जंबुद्दीवे न माएज्जा ॥१॥" पाणीना एक बिंदुमां जेटला जीवो छे तेटला जीवो पारेवा जेवईं रूप धारण करे तो समग्र जंबूद्वीपमां न समाय एम तीर्थंकर भगवंतो जणावे छे. वळी का छे के-“जत्थ जलं तत्थ वणं, जत्थ वणं तत्थ निच्छओ तेऊ। तेऊ वाउसहगओ, तसा य पच्चक्खया चेव ॥२॥ ता हंतुण परपाणे, अप्पाणं जो करेइ सप्पाणं । अप्पाणं दिवसाणं, कएण नासेइ अप्पाणं ॥३॥"ज्यां जल होय त्यां वनस्पति होय, वनस्पतिकाय होय त्यां जरूर अग्निकाय होय ज. अग्निनी साथे हमेशां वायु होय ज अने त्रसकाय तो प्रत्यक्ष जणाय छे माटे सचित्त जळना पानथी विराधनानो पार ज न आवे. जे छक्कायना जीवोने हणीने श्रीगच्छाचार-पयन्ना- २०३
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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