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________________ अन्यने शिक्षा करवा माटे दांतथी करडतां ते मृत्यु पामे छे. १२ केवलज्ञानलब्धि इन्द्रियो अने मननी सहाय विना लोक अने अलोकना सर्व पदार्थोना वर्तेला, वर्तता अने वर्तनारा सर्व भावने जाणे. १३ गणधरलब्धि-गणधरपणुं प्राप्त थाय. १४ पूर्वधरलब्धि- चौदपूर्वरूप श्रुतज्ञान प्राप्त थाय. १५ तीर्थंकरलब्धि तीर्थंकरपदनी प्राप्ति थाय. १६ चक्रवर्तिलब्धि चक्रवर्तीपणुं प्राप्त थाय. छ खंड राज्य, चौद रत्नो, नवनिधि विगेरेनी प्राप्ति थाय. १७ बळदेवलब्धि- बळदेवपणुं प्राप्त थाय. १८ वासुदेवलब्धि वासुदेवपणुं प्राप्त थाय. चक्र वगेरे सात रत्नो तथा त्रण खण्ड भूमिनी प्राप्ति थाय. १९ क्षीराश्रवादिलब्धि- आलब्धि त्रण प्रकारनी छे. (१) क्षीराश्रव, (२) मध्वाश्रव अने (३) घृताश्रव शेरडीनो चारो चरनारी एक लाख गायोने दोहीने तेनुं दूध पचास हजार गायोने पाय, तेने पाछी दोहीने तेनुं दूध पशीच हजार गायोने पाय, तेनुं दूध पार्छ साडाबार हजार गायोने पाय. एम अर्थो अर्धा क्रम करतां छेवट एक गायने पाय अने तेने दोवाथी जे दूध प्राप्त तेनी मिठाश अजोड होय छे. आ लब्धिना प्रभावथी मुनिजननुं आq मिष्ट वचन थाय छे एटले श्रोता जो शारीरिक के मानसिक दुःख भोगवतो होय तो ते शीघ्र दूर थई जाय छे अने मिष्टान्न जम्या होय तेवो आनंद उद्भवे छे. एवी ज रीते मधु जेवा मिष्ट वचन जणाय ते मध्वाश्रव अने ऊपर जणावेल गायनी संख्याना क्रमे छेवट एक गायना दूधनुं घी जेम मिष्ट अने वीर्यवान् थाय छे तेम श्रोताजन पण शक्तिमान् अने सन्तुष्ट थाय छे. उपलक्षणथी इक्ष्वाश्रव अने अमृताश्रव नामनी लब्धिओ पण छे जेथी शेरडी अने अमृत जेवा मधुर वचन लागे. वळी मुनिना पात्रमा पडेलो तुच्छ आहार पण दूध विगेरेनी जेवो मिष्ट बनी जाय ते पण क्षीराश्रवादि लब्धिओ कहेवाय छे. २० कोष्टबुद्धिलब्धि धान्य भरवाना मोटा कोठारमा नाखेलुं अनाज जेम वर्षो सुधी विनाश पामतुं नथी अने तेनी ते ज स्थितिमा रहे छे तेम मुनिए शीखेला सूत्रार्थो वर्षो पर्यन्त स्थिर रहे-भुलाय ज नहीं. २१ पदानुसारिणी लब्धि-तेना त्रण प्रकार छे- (१) ग्रन्थनी शरूआतनुं पद सांभळीने संपूर्ण ग्रन्थनो बोध थाय ते अनुश्रोतपदानुसारिणी, (२) छेल्ला पदने सांभळवाथी संपूर्ण ग्रन्थनो बोध थाय ते प्रतिश्रोतपदानुसारिणी अने (३) मध्य पदने सांभळवाथी संपूर्ण ग्रंन्थनो बोध थाय ते उभयपदानुसारिणी. २२ बीजबुद्धिलब्धि- जेम सारा क्षेत्रमा वावेल बीज अनेक बीज प्रगटावे तेम बीजभूत एवा एक ज अर्थपदने सांभळीने बीजं सर्व श्रुत यथार्थ जाणी शके. कोई कहेशे के तो पछी पदानुसारी लब्धि अने आ लब्धिमा तफावत शो? तेनो जवाब ए छे के-पदानुसारीमां तो एक पद जाणवाथी बीजा पद जाणी शकाय ज्यारे बीजबुद्धिधारी तो एक पदार्थने जाणवाथी अनेक पदार्थोनो ज्ञाता थाय. आ बीजबुद्धि लब्धि गणधर भगवंतोने होय छे एटले तीर्थंकर भगवंतना मुखथी “उप्पन्नेइ वा विगमेइ वा धुवेइ वा” ए त्रिपदी सांभळीने द्वादशांगीनी रचना करी शके छे. २३ तेजोलेश्यालब्धि अत्यन्त क्रोधने लीधे अनेक योजन प्रमाण क्षेत्रमा रहेल पोताना शत्रु विगेरे पदार्थोने दग्ध करी शके. अग्नि जेवा उष्ण पुद्गलोने फेंकवानी शक्ति ते तेजोलेश्या. जे साधु छट्ठने पारणे छट्ठ करे अने पारणाने दिवसे पण एक मुठी अडदना बाकळा खाय अने एक चुलुक मात्र पाणी पीए-आथी विशेष खाय-पीवे नहीं-आ प्रमाणे छ महिना पर्यंत तपश्चर्या करे त्यारे तेजोलेश्या लब्धि प्राप्त थाय छे. २४ आहारकलब्धि-चौद पूर्वधर श्रीगच्छाचार-पयन्ना-१९२
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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