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________________ ३ सरलता-माया रहित पणुं अने ४ मान रहित होय. एवी ज रीते चार अनुप्रेक्षा जणावे छे के– “ अवायाणुप्पेहा १, असुभाणुप्पेहा २, अणंतवत्तियाणुप्पेहा ३, विपरिणामाणुप्पेहा ४ । १ अपायानुप्रेक्षा - हिंसादिक पापकृत्यथी कर्मबंध थाय, तेथी जीवने कष्ट थाय छे, २ अशुभानुप्रेक्षा - संसार मिथ्या छे, ३ अनंतवृत्तितानुप्रेक्षा- संसारनी परंपरानो पार नथी अर्थात् जीव आ संसाररूपी उदधिमां अनंता भव करे छे अने ४ परीणामानुप्रेक्षा-जे विपदार्थों छे ते क्षणक्षण पलटन-स्वभाववाळा छे एवो सदा विचार करवो ते. ६. कायोत्सर्ग-कर्मक्षयार्थे शरीरनो त्याग अर्थात् देह परथी ममत्वभाव त्याग करवो ते बे प्रकारनो छे - १ द्रव्यव्युत्सर्ग अने २ भावव्युत्सर्ग चार प्रकारे कहेल छे. “ सरीरविउस्सग्गे ९१, गणविउस्सग्गे २, उवहिविउस्सग्गे ३, भत्तपाणविउस्सग्गे ।” १ शरीरनो अने २ गच्छनो त्याग करवो एटले स्थविरकल्पीपणानो त्याग करी जिनकल्पीपणुं ग्रहण करवुं, ३ उपधिनो त्याग करे एटले जिनकल्पीपणुं स्वीकार अने अभिग्रह पण करे अने ४ भात-पाणीनो त्याग करे. भावव्युत्सर्ग त्रण प्रकारनो छे. “कसायविउस्सग्गे १, संसारविउस्सग्गे २, कम्मविउस्सग्गे ३ ।” १ चार प्रकारना क्रोधादि कषायोनो त्याग, २ चारे गतिनो त्याग एटले नारक गतिना हेतुरूप मिथ्यात्वादिकनो त्याग करवो, तिर्यंचगतिना हेतुरूप कारणनो त्याग, मनुष्यपणुं प्राप्त थाय तेवा निमित्तोनो त्याग तेमज जेनाथी देवगति प्राप्त थाय तेवा पुण्यकर्मनो पण त्याग ते संसारव्युत्सर्ग जाणवो. ३ ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र अने अंतराय-ए आठ प्रकारना कर्मों बांधवाना हेतुरूप कारणोनो त्याग. भावव्युत्सर्गना आ त्रण भेद पैकी कोई शंका करतां पूछे छे के बीजो संसारव्युत्सर्ग अने त्रीजो कर्मव्युत्सर्ग शा माटे जुदा जुदा दर्शाव्या ? संसारनो व्युत्सर्ग करवाथी आपोआप कर्मव्युत्सर्ग थई जाय छे अथवा कर्मव्युत्सर्ग थवाथी स्वयमेव संसारव्युत्सर्ग थई जाय छे. आ शंकाना समाधान माटे शास्त्रकारभगवंत जणावे छे के-ते बने भेदो अलग दर्शावीने कार्य तथा कारणनुं भिन्नपणुं दर्शाव्यं छे. आ प्रमाणे अभ्यंतर तप छ प्रकारनो दर्शाव्यो. लोकोना जाणवामां आ तप आवतो नथी, मिथ्यात्वी-अन्यतीर्थिको आवा प्रकारना तपनुं सेवन करी शकता नथी तेमज मोक्षप्राप्तिना अंतरंग कारणभूत होवाथी तेने अभ्यंतर तप कहेवामां आवे छे. हवे वीर्याचारना त्रण भेदो कहे छे– “अणिगूहियबलवीरिओ, परक्कमइ जो जहुत्तमाउत्तो । जुंजइ य जहाथामं, नायव्वो सो वीरियायारो ॥७ ॥” पोतानुं बल एटले शरीरनुं सामर्थ्य अने वीर्य एटले मननो उत्साह या तो बाह्य सामर्थ्य अने अभ्यंतर सामर्थ्यने गोपव्या विना तीर्थंकर परमात्मा उपदेशेल छत्रीश प्रकारना आचारमां (ज्ञानाचार ८, दर्शनाचार ८, चारित्राचार अने तपाचार १२ = ३६) पोतानी शक्ति प्रमाणे प्रवर्ते, उद्यमशील रहे, उपयोगवंत रहे, चेतनने आघो- पाछो न थवा दे ते वीर्याचार जाणवो. आ प्रमाणे छत्रीश प्रकारना आचारमां पोतानुं (१) बल अने (२) वीर्य गोपव्या विना (३) यथाशक्ति प्रवर्तन ए त्रण प्रकारो थया. आ पांच प्रकारना आचारने पोते पाळे अने बीजाने श्रीगच्छाचार - पयन्ना — ११३
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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