SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपरोक्त पंक्तियों को पढ़ने पर यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि आज से ४५ वर्ष पूर्व श्रमण संस्था में शिथिलता बढ़ रही थी। उस शिथिलता पर अंकुश लगाने हेतु गच्छाचार पयन्ना उपयोगी था। जैसे बरसात के दिनों में नदी में पानी बढ़ रहा होता है वैसे ही श्रमण संस्था रूप महल के चारों ओर शिथिलता रूप जल बढ़कर उसकी नींव में पानी जाने जैसी परिस्थिति उत्पन्न हो गई है । उस शिथिलता को दूर करने में सहायक बनने वाले ऐसे ग्रंथ की अप्राप्यता खटक रही थी। ___एक बार प.पू. आगमज्ञमुनि श्री रामचन्द्र विजयजी के पास अध्ययन करते हुए साध्वाचार विषयक चर्चा में उन्होंने कहा था “प्रत्येक साधुसाध्वी को गच्छाचार-पयन्ना का वांचन वर्ष में एक बार तो अवश्य करना चाहिये ।" उस समय इस ग्रंथ के महत्व का विशेष ध्यान आया और मन में इसे पुन: प्रकाशन करवाने की भावना उत्पन्न हुई। श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के पट्टधर श्री धनचंद्रसूरिश्वरजी उनके पट्टधर श्रीभूपेन्द्रसूरीश्वरजी उनके पट्टधर श्री यतीन्द्रसूरीश्वरजी एवं उनके पट्टधर श्री विद्याचन्द्रसूरीश्वरजी के पट्टधर वर्तमानाचार्य श्री जयंतसेनसूरीश्वरजी के साथ प्रसंगोपात गच्छाचार पयत्रा के पुनः: प्रकाशन विषयक चर्चा हुई तब उन्होंने पुन: प्रकाशन की आज्ञा प्रदान की। धाणसा चातुर्मास में ज्ञान भक्ति की चर्चा के समय श्रीमान शा. अमीचंदजी ताराजी दाणी ने सुकृत में अर्थउपयोग की भावना व्यक्त की तब गच्छाचार-पयन्ना के प्रकाशन की बात उनसे कही । उन्होंने स्वीकृति दी । सम्पूर्ण प्रकाशन में सुकृत के सहभागी वे ही हुए हैं । ज्ञान भक्ति हेतु धन्यवाद । उन्होंने धर्म के अनेक कार्यों में अपनी लक्ष्मी का सदुपयोग किया है, भविष्य में भी इसी प्रकार धार्मिक कार्यों में धन व्यय करते रहें यही भावना। __इस ग्रंथ के प्रकाशन में शाश्वत धर्म के संपादक जुगराज कुन्दनमलजी संघवी थाना वालों का सराहनीय सहयोग निस्वार्थ भाव से रहा है, उनके ही अथक परिश्रम से इस ग्रंथ की शोभा में चार चांद लगे हैं । इस ग्रंथ की उपयोगिता के विषय में तो कुछ भी नहीं कहना यह ग्रंथ स्वयं अपनी उपयोगिता दर्शा रहा है । इस ग्रन्थ का वाचन, मनन् कर हम सब लाभान्वित बनें । स्वयं के दोषों को, पेर में लगे अनेक कांटों की तरह ढूंढ-ढूंढ कर निकालने का हम सभी प्रयत्न करें । यही । शुभम्-शुभम्-शुभम् आहोर (राज.) वीर सवंत - २५१७ मुनि जयानंदविजय जेठ सुदी - ५
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy