SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ *४४* श्री आचारांगसूत्रम् नहीं रहे गृहतीर वह, नहीं श्रमण के घाट। संयम-व्रत जो तोड़ दे, बिगड़ें दोनों ठाट।।६।। धोबी का कुत्ता लखो, रहे न घर नहिं घाट। इसी तरह व्रत छोड़कर, होता बारहबाट ।।७।। • कल्याण-मार्ग. मूलसूत्रम्विमुत्ता हु ते जणा जे जणा पारगामिणो, लोभमलोभेण दुगुंछमाणे लद्धे कामे णाभिगाहइ। पद्यमय भावानुवाद विषयों से हैं पार जो, पाले अपना लक्ष्य। गामी-पार 'सुशील' मुनि, मुनि जीवन का तथ्य।।१।। लोभ विजय संतोष से, होइ अकर्मा संत। सूरि 'सुशील' कल्याण का, बड़ा सुगम है पंथ।।२।। जीत लोभ संतोष से, तो तृष्णा भी जाय। तब ले संयम तात जो, निश्चित शिव-सुख पाय।।३।। इन्द्रिय-भोग कषाय का, दिखे जिसे परिणाम। मुनि ‘सुशील' का कथन यह, साधक वह निष्काम।।४।। .अर्थ-अनर्थ बोध. मूलसूत्रम्विणा वि लोभं णिक्खम्म एस अकम्मे जाणइ पासइ, पडिलेहाए णावकंखइ, एस अणगारे त्ति पवुच्चइ। अहो य राओ परितप्पमाणे कालाकालसमुट्ठाई संजोगट्ठी अट्ठालोभी आलुपे सहसक्कारे विणि विट्ठचित्ते एत्थ सत्थे पुणो पुणो। से आय-बले से णाइ-बले से सयण-बले से मित्त-बले से पेच्च-बले से देव-बले से राय-बले से चोर-बले से अतिहि-बले से किविण-बले से समण-बले। इच्चेए-हिं विरूवरूवेहिं कज्जेहिं दंडसमायाणं संपेहाए भया कज्जइ, पावमोक्खो त्ति मण्णमाणे, अदुवा आसंसाए।
SR No.022583
Book TitleAcharang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri, Jinottamsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2000
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size41 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy