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________________ मूलसूत्रम् - दूसरा अध्ययन : लोक विजय पहला उद्देशक कषाय विषय गुणे से मूलट्ठाणे, जे मूलट्ठाणे से गुणे । पद्यमय भावानुवाद शब्दादिक जो विषय हैं, हैं कषाय के हेतु । कारण मूल कषाय वे, हैं विषयों के केतु ।। • विषयप्रमाद परिमाण • मूलसूत्रम् - इति से गुणट्ठी महया परियावेणं पुणो पुणो वसे पमत्ते । तं जहा - माया मे, पिया मे, भाया मे, भइणी मे, भज्जा मे, पुत्ता मे, धूया मे, सुहा मे, सहि सयण संगंथसंथुया मे, विवित्तोवगरणपरिवट्टणभोयणच्छायणं मे, इच्चत्थं गढिए लोए वसे पमत्ते । पद्यमय भावानुवाद विषयों की इच्छा सतत, जिससे बढ़े प्रमाद । पाता वह परिताप बहु, पुनि-पुनि जन्म विषाद । । १ । । छन्द घनाक्षरी मेरे तात मात अरे, बन्धव भगिनी मेरी, मेरा पुत्र मेरी पुत्री, मेरी प्यारी नारि जो । मेरी वधु मेरा मित्र, मेरा है सम्बन्धी जान, मेरा सहवासी खास करे, मनुहार जो । । २ ।।
SR No.022583
Book TitleAcharang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri, Jinottamsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2000
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size41 MB
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