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________________ प्रथम अध्ययन : शस्त्रपरिज्ञा *३७* -.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.. पद्यमय भावानुवाद साधक जो आचार में, रमण करे नहिं क्रूर। वह हिंसा करता सदा, हो संयम चकचूर।। • वर्तमान दशा. मूलसूत्रम् आरंभमाणा विणयं वयंति। पद्यमय भावानुवाद हिंसा में अनुरक्त नित, दे संयम उपदेश । यही आश्चर्य हो रहा, कैसे वे श्रमणेश।। •आसक्त श्रमण. मूलसूत्रम् छंदोवणीया अज्झोववण्णा। पद्यमय भावानुवाद विषयों में आसक्त नित, निज इच्छा अनुसार। पापकर्म करते रहें, कैसे वे अणगार।। • दुरित द्वार. मूलसूत्रम् आरंभसत्ता पकरंति संगं। पद्यमय भावानुवाद आरम्भ में आसक्त हो, इच्छा और बढ़ाय। नये-नये बन्धन बढ़ा, पापकर्म लिपटाय।।
SR No.022583
Book TitleAcharang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri, Jinottamsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2000
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size41 MB
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