SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * ३४* .... श्री आचारांगसूत्रम् चौथा उद्देशक: • शस्त्र-बोध. मूलसूत्रम्जे दीहलोगसत्थस्स खेयण्णे से असत्थस्स खेयण्णे, जे असत्थस्स खेयण्णे से दीहलोगसत्थस्स खेयण्णे।। पद्यमय भावानुवाद दीर्घलोक का शस्त्र सुन, अगर जिसे हो ज्ञात। वह संयम को जानता, फरमाते जगनाथ।।१।। संयम भावस्वरूप का, अगर जिसे हो ज्ञान। दीर्घलोक वह जानता, वही कुशल मतिमान।।२।। •विषय-परिमाण. मूलसूत्रम् जे पमत्ते गुणट्ठिए से हु दंडे त्ति पवुच्चइ। पद्यमय भावानुवाद रे पुरुष! तू प्रमत्त बन, हुआ विषय में लीन। निश्चय दण्ड तू दे रहा, अरे! जीव आधीन।। पाँचवाँ उद्देशक: • मोहित दशा. मूलसूत्रम् एस लोगे वियाहिए, एत्थ अगुत्ते अणाणाए। पद्यमय भावानुवाद अरे! अरे! इस लोक में, विषयों की भरमार। हो आसक्त अगुप्त वह, जिन आज्ञा दे टार ।।
SR No.022583
Book TitleAcharang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri, Jinottamsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2000
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size41 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy