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________________ प्रथम अध्ययन : शस्त्रपरिज्ञा जैसे मूच्छित मनुज को, सुख-दुख पीड़ा होय । 'षट्काय जीव को, सुख-दुख अनुभव होय । । २ । । त्यों तीसरा उद्देशक: संयम श्रद्धा मूलसूत्रम् - जाए सद्धाएणिक्खंतो, तमेव अणुपालिज्जा विजहित्ता विसोत्तियं । पद्यमय भावानुवाद - रे साधक ! जिस भाव से, दीक्षा ली स्वीकार । वही भाव संशयरहित, कर पालन अणगार । । • महामार्ग • पणया वीरा महावीहिं । मूलसूत्रम् - पद्यमय भावानुवाद - वीर धीर मानव अहो ! महामार्ग अपनाय । लक्ष्य समर्पित हो गए, श्रद्धा बल विकसाय ।। जल सजीव बोध • * ३३ * मूलसूत्रम् - इहं च खलु भो ! अणगाराणं उदय-जीवा वियाहिया । पद्यमय भावानुवाद साधक के कल्याण-हित महावीर फरमान । प्राणवान निश्चित सलिल, नहीं भूल मतिमान ।। श्रमण धर्म • अदुवा अदिण्णादाणं । मूलसूत्रम् - पद्यमय भावानुवाद— जो भी सचित्त नीर का, कर लेते उपयोग । हिंसा तथा अदत्त हो, दोनों के संयोग । |
SR No.022583
Book TitleAcharang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri, Jinottamsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2000
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size41 MB
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