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________________ भूमिका * २१ * -.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.. समस्त विघ्न विनाशिनी, जिनवाणी शिव-द्वार। जैनागम वन्दन करूँ, क्षण-क्षण बारम्बार ।।२३३ ।। सूरि 'सुशील' नित्य नमन, बहुश्रुत श्री श्रमणेश। यथातथ्य वर्णन करे, भाषक जो तीर्थेश।।२३४।। सूत्रज्ञान जिसने लिया, सभी ले लिया सार। बस इतनी-सी बात में, लाखों मर्म विचार।।२३५ ।। सूत्र रचना हेतु छह निमित्त अध्ययन शतक उद्देश्य, प्रभो वचन अनुसार। वाचन हित अनुकूलता, रचना कारण सार ।।२३६ ।। क्या अध्ययन पहले करें, क्या फिर करना बाद। आगम-रचना श्रेष्ठ शुभ, सरल रीति से याद ।।२३७ ।। श्री सद्गुरु भगवन्त मुख, जैनागम हर एक। सहज अर्थ उर धारणा, जिससे आगम देख।।२३८।। सद्गुरु अपने शिष्य हित, देते आगमज्ञान। सूत्ररूप रचना करे, श्री गणधर भगवान ।।२३९ ।। सद्गुरु अपने शिष्य से, पूछे प्रश्न विचार। जिससे रचना सूत्र की, करते करुणागार ।।२४०।। शिष्य पृच्छा गुरुदेव से, उत्तर से सन्तोष। जिससे आगमसूत्र की, हो रचना निर्दोष ।।२४१ । । गणधर नाम कर्म उदय (जन), रचना सूत्राचार । चतुर्विध श्रीसंघ का, हो उन्नत उपकार ।।२४२ । । श्री निर्ग्रन्थ प्रवचन अहो! दुग्ध तुल्य उपमान। मंथन टीका चूर्णि का, अर्थ घृत संविधान।।२४३ ।। आयम लेखन विरोध रहस्य अगर सूत्र लिपिबद्ध हो, बहुधा उत्पन्न दोष। हिंसा हो त्रस जीव की, संयम क्षय उद्घोष।।२४४।। त उपका मथन टीका वचन अहो!
SR No.022583
Book TitleAcharang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri, Jinottamsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2000
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size41 MB
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