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________________ .... श्री आचारांगसूत्रम् * २० * १० प्रयास पंचम आगम वाचना अहो! अहो! दसवीं सदी, वीर बाद निर्वाण। गणी देवर्द्धि क्षमाश्रमण, जिनशासन परिधान ।।२२२ । । जिनशासन रक्षक अहो! कर अपना बलिदान। अमर धरा पर बन गये, युग-युग नाम निधान ।।२२३ । । वल्लभीपुर सौराष्ट्र में, मुनि मण्डल एकत्र। जैनागम लिखते रहे, विस्मृत पाठ पवित्र ।।२२४ । । पंचम थी यह वाचना, पुस्तक रूप ललाम । कतिपय श्रमण विरोध में, क्या डरने का काम।।२२५ ।। पाठान्तर मिलते रहे, सूरि 'सुशील' निर्देश। भाव समन्वय हो गए, आगम रूप विशेष ।।२२६ ।। षष्ठ प्रयास युग प्रसिद्ध मुनिराज थे, पूरण प्रज्ञावान। लिख-लिख कर आगम अहा, अमित किया अहसान।।२२७ ।। नव्य-भव्य चिन्तन दिये, आगम टीकाकार । लेखन चूर्णी भाष्य हित, जिनशासन उपकार ।।२२८।। मुनि ‘सुशील' चिन्तन रहा, बीत गये बहु साल। जिन आगम उपदेश के, लिखने पद्य रसाल।।२२९ । । एक-एक आगम अहा, क्रमशः लेखन भाव। मुनि 'सुशील' सोचत रहे, रहे सतत उर चाव।।२३०।। नम्र कथन जैनागम दोहन करूँ, नव्य भव्य इतिहास। मुनि ‘सुशील' सबके लिए, कर लेना अभ्यास।।२३१ । । कण्ठस्थ कर व्याख्यान में, लो उपयोग ललाम । सूरि 'सुशील' नम्र कथन, मत बदलो तुम नाम।।२३२।।
SR No.022583
Book TitleAcharang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri, Jinottamsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2000
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size41 MB
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