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________________ *१२ श्री आचारांगसूत्रम् - - - -. -. -. - . -. -. -. - . -. -. -. -. -. -. -. -. मुनि 'सुशील' जिन वचन हैं, रत्नतुल्य रमणीक। मालावत् गुम्फित करूँ, आगम अर्थ सटीक।।१३१ ।। जैनागम के नेत्र से, दीखे जग-जंजाल । जन्म-मरण भी नष्ट हो, कभी न व्यापै काल।।१३२।। जिनवाणी जानें वही, अप्रमत्त धीर सुजान। काला अक्षर प्रमत्त को, महिषी सम लो जान।।१३३ ।। न्याययुक्त जिनवर वचन जाने-माने अरु करें, साधक की पहचान । पथ दर्शक हैं श्रमण जन, मत चूके नादान।।१३४।। कर्म शत्रु सब नष्ट हों, जिनवाणी असिधार। अमोघ बाण है राम का, भीषण इसकी मार।।१३५ ।। संघ सम्पदा सूत्र ही, जिनशासन आधार। देश तथैव विदेश हो, सूरि ‘सुशील' प्रचार।।१३६ । । श्रद्धा से आगम पढ़ो, करो न तर्क प्रवीन। सत्य तथ्य वाणी अहो! रखना एक यकीन ।।१३७ ।। निर्मल जल गंगा बहे, यही सूत्र का हाल। सूरि 'सुशील' को मिल गया, अवसर यह कलिकाल ।।१३८।। सहज सिद्धि सुख प्राप्त हो, अगर जिनागम भक्ति। ज्ञानावरणीय कर्म की, शिथिल हो सके शक्ति।।१३९ ।। न्याययुक्त जिनवर वचन, स्वीकृत ले आचार। श्रद्धा अरु विश्वास हो, बस इतना ही सार।।१४०।। आगम का करते रहो, वन्दन अरु सत्कार। पूजन फल भगवन्त का, गणपति का उद्गार।।१४१ ।। आगम अतिशय पापी भी पावन बना, अर्जुन मालाकार । जिनवाणी पतवार से, जीवन नैया पार ।।१४२ ।।
SR No.022583
Book TitleAcharang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri, Jinottamsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2000
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size41 MB
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