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________________ *9* 12. रूप नामक द्वादश अध्ययन में रूप को देखने की विधि का वर्णन है। 13. प्रक्रिया नामक त्रयोदश अध्ययन में गृहस्थ से काम करवाने की विधि का वर्णन है। 14. अन्योन्य क्रिया नामक चतुर्दश अध्ययन में परस्पर क्रिया करने की विधि का वर्णन है। 15. भावना नामक पञ्चदश अध्ययन में भगवान महावीर स्वामी के चरित्र तथा पाँच महाव्रतों की पच्चीस भावनाओं का वर्णन है। 16. विमुक्त नामक षोडश अध्ययन में साधु की उपमाओं का वशद वर्णन (3) शीतोषणीय नामक तृतीय अध्ययन के चार उद्देशक हैं। इसमें सुप्त, जागृत, तत्त्वज्ञ-अतत्त्वज्ञ, प्रमाद-त्याग एवं जो एक को जानता है वह सब को जानता है इत्यादि तथ्यों का प्रतिपादन उत्कृष्ट रीति से किया गया है। (4) सम्यक्त्व नामक चौथे अध्ययन में भी चार उद्देशक हैं। इनमें क्रमशः धर्म का मूल-दया, सज्ञान-अज्ञान, सुख प्राप्ति का उपाय एवं मुनि (साधु) के लक्षण का विशद वर्णन है। (5) लोक सार (आवन्ती) नामक पाँचवे अध्ययन में छह उद्देशक हैं, जिनमें बताया गया है कि विषयासक्त मुनि नहीं हो सकता। मुनि तो वही है जो कि सावद्यानुष्ठान का त्यागी हो, कनक-कामिनी का त्यागी हो तथा अव्यक्त साधु अकेला नहीं रहता। ज्ञानी और अज्ञानी का भेद, प्रमादी एवं अप्रमादी में क्या अन्तर है ? इसका निरुपण अत्यन्त सारगर्भित भाषा में सरलता से प्रतिपादित किया गया है। (6) धूताख्यान नामक छठे अध्ययन में पाँच उद्देशक हैं। इनमें कामासक्त के दुःख, रागी-विरागी के सुख-दु:ख, ज्ञानी मुनि की दिशा का सुस्थित एवं भ्रष्ट के लक्षण तथा उत्तम साधु के लक्षणों का प्रतिपादन प्रभावी रूप में किया गया है। (7) महाप्रज्ञा नामक सातवाँ अध्ययन विच्छिन्न हो चुका है। (8) विमोक्ष नामक आठवें अध्ययन में आठ उद्देशक हैं जिनमें मतमन्तान्तर साधु अकल्पनीय परित्याग शंका निवारण, वस्त्र परित्याग, भक्त
SR No.022583
Book TitleAcharang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri, Jinottamsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2000
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size41 MB
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