SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 159
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आठवाँ अध्ययन : विमोक्ष • मर जाना मंजूर • दोष सेवन निषेध * १२३ * मूलसूत्रम् - जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवइ पुट्ठो खलु अहमंसि णालमहमंसि सीयफासं अहिया सित्तले से वसुमं सव्व - समण्णागय-पंणाणेणं अप्पाणेणं केइ अकरणयाए आउट्टे । तवस्सिणो हु तं सेयं जमेगे विहमाइए । तत्थावि तस्स कालपरियाए । से वि तत्थ विअंतिकारए । इच्चेयं विमोहायतणं हियं सुहं खमं णिस्सेसं आणुगामियं । त्ति बेमि । पद्यमय भावानुवाद ऐसा होइ प्रतीत जब, परिषह सहे न जायँ 1 जागृत करे विवेक को, कबहू नहिं घबराय । । १ । । सहन करे उपसर्ग मुनि, रक्खे समता धीर । विचलित नहिं उपसर्ग से, कहते हैं प्रभु वीर । । २ । । पाये मुनिवर कष्ट यदि, उदय हुआ तन २ अथवा पीड़ित काम से, इन्द्रियँ चाहें भोग । । ३ । । नारी आये सामने, करना चाहे नष्ट | मुनिवर भी असमर्थ हों, आशंका हो भ्रष्ट ।।४।। ऐसे क्षण में मुनि करे, मरण वरण हितवन्त । मगर नहीं चारित्र में, दोष लगाये सन्त । । ५ । । यह भी मरण कि काल का, कहलाये पर्याय । धीर-वीर साधक श्रमण, देता कर्म मिटाय ।। ६ ।। मर जाना मंजूर हो, नहीं लगाना दोष । मुनि 'सुशील' करता यही, अन्तरंग उद्घोष । । ७ ।। मरण-श्रेय लेकर मरे, जीवन कर बेदाग । यही श्रेयस्कर भावना, प्राप्त मोक्ष सौभाग । । ८ । ।
SR No.022583
Book TitleAcharang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri, Jinottamsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2000
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size41 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy