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________________ * ११४* ...... श्री आचारांगसूत्रम् पद्यमय भावानुवाद करो मोक्ष की भावना, मुनिवर धर्म प्रधान। शुचि संयम आराधना, निश्चय हो कल्याण।।१।। विषय पराजित कर लिया, वही बहादुर वीर। अल्प काल ही जीव तब, दे कर्मों को चीर।।२।। भाये ऐसी भावना, नहिं मेरा संसार। रहे अकेला अन्त में, केवल धर्माधार ।।३।। यतना युत करनी सकल, प्रतिदिन बारम्बार। महा श्रमण वे कर्मक्षय, करते सर्व प्रकार ।।४।। द्रव्यभाव मुण्डित श्रमण, रहते कभी अचेल। रूक्ष अशन ऊनोदरी, चढ़ते समता शैल।।५।। गाली या अपमान हो. दंडित या आक्रोश। - निंदा झूठे वचन सुन, कभी न आये रोष ।।६।। इतना होने पर सदा, करे सहन अणगार । पूर्व पाप परिणाम फल, भोग सतत सविचार ।।७।। तिरसठ या छत्तीस भी, परिषह जब प्रकटाय। सहन करे समभाव से, कर्म निर्जरा पाय।।८।। • भावलग्न बोध. मूलसूत्रम्ए ऐ भो ! णगिणावुत्ता जे लोगंसि अणागमण धम्मिणो आणाए मामगं धम्म, एस उत्तरवाए इह माणवाणं वियाहिए, इत्थोवरए तं झोसमाणे आयणिज्जं परिण्णाय परियाएण विगिंचइ, इहमेगेसिं एक चरिया होइ तत्थ इयरा इयरेहिं कुलेहिं सुद्धेसणाए सव्वेसणाए से मेहावी परिव्वए सुब्भिं अदुवा दुब्भिं अदुवा तत्थ भेरवा पाणा पाणे किलेसंति, ते फासे पुट्ठो धीरो अहियासिज्जासि।
SR No.022583
Book TitleAcharang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri, Jinottamsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2000
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size41 MB
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