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________________ छठा अध्ययन : धुत * ११३ * -. - . -. -. -. -. -. -.. - . - . -. -. -. -. -. -. -. -. . -. -. - . -. -. - . -. • पुण्य प्रभाव. मूलसूत्रम्वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायं पुंछणं विउसिज्झा, अणुपुव्वेण अणहियासेमाणा परीसहे दुरहियासए, कामे ममायमाणस्स इयाणिं मुहुत्तेण वा अपरिमाणाए भेए, एवं से अंतराएहिं कामेहिं आकेवलिएहिं अवइण्णा चेए। पद्यमय भावानुवाद मानव भव दुर्लभ महा, मिलता पुण्य प्रभाव। मुनि 'सुशील' साँची कहे, कर ले धर्म लगाव।।१।। सर्व विरति धारण करे, पर दुख से घबराय। जिससे वे गृहवास में, शीघ्रतया ही आय।।२।। फिर से विषय विलास में, रहे नित्य ही मग्न। कर विचार यह अल्प सुख, नश्वर काया भग्न।।३।। तृप्त न होता भोग से, अन्तहि तू पछताय। खल संयम से भ्रष्ट हो, नरभव व्यर्थ गँवाय।।४।। चाहे लाखों कष्ट हों, पद-पद सुर नर वार। फिर भी संयम त्याग मत, बस इतना स्वीकार ।।५।। •विषय पराजय बोध. मूलसूत्रम्अहेगे धम्ममायाय आयाणप्पभिइसु पणिहिए चरे, अप्पलीयमाणे दढे सव्वं गिद्धिं परिण्णाय, एस पणए महामुणी, अइयच्च सव्वओ संगं ण महं अस्थित्ति इय एगो अहं, अस्सि जयमाणे इत्थ विरए अणगारे सव्वओ मुंडे रीयंते, जे अचेले परिवुसिए संचिक्खइ ओमोयरियाए, से आकुढे वा हए वा लुंचिए वा पलियं पकत्थ अदुवा पकत्थ अतहेहिं सद्दफासेहिं इय संखाए एगयरे अण्णयरे अभिण्णाय तितिक्खमाणे परिव्वए जेय हिरी जे य अहिरीमाणे।
SR No.022583
Book TitleAcharang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri, Jinottamsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2000
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size41 MB
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